21
September 2014
17:39
-इंदु बाला
सिंह
अपनों
की आंखो की चाह
हमें खींचती
चली जाती है
और
बस हम यूं ही
निरुद्देश्य
से जीते चले जाते हैं
अपने लिए नहीं
औरों के लिये
अपनी पीठ
स्वयं ठोंकते हुये ........
देख ! तेरी
जरूरत है
औरों को
........
शायद यही जीवन
है |
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