23
October 2014
09:06
-इंदु बाला
सिंह
चोरी नहीं
होते
दीये अब
कहते हैं
दीवाली के
दीये चोरी होने से
घर की
लक्ष्मी चली
जाती है
इसलिये
रात को सोने
से पहले
समेट लेते थे
हम
अपने दीये
पर
अब नहीं
चुराते
दीये
अभावग्रस्त
बस्ती के
गुमनाम बच्चे
क्योंकि
वे
आज समझदार हो
चले हैं
उन्हें
पता है
कि
उनके घर में
आज
तेल नहीं है
और
कल भी नहीं
रहेगा
इसलिये
वे
रात में
दूर से देख
दीपावली की रोशनी
खुश हो लेते
हैं
और
भोर भोर दौड़
पड़ते हैं
ढूंढने
अधजले पटाके
न मिले
कुछ
तो बस खेल
लेते हैं
सड़क पर पड़े
फुलझड़ी के
डिब्बे के रगीन चित्रों से
फिर
चुनते हैं
लोहे के तारों
को
जो बिकने पर
देते हैं
उन्हें
उनके हिस्से
की
खुशी |
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