18
October 2014
22:27
-इंदु बाला
सिंह
हुदहुद आया
समझाया
क्यूं रखा है
तुमने
यादों को
अपने खतों को
मृत सम्बन्धों
को
जान बचा कर
भागते हैं सब
मुसीबत में
तुमने तो
इतने सारे
मृत
प्रेमिल
क्षणों को
सम्बन्धों को
आफिस की
अपनी पोस्टिंग
को
इन्टरव्यू को
एक्स्पीरेयेंस
लेटर्स को
बचा के रखा है
ढो रही हो
अनुभूतियों के
गट्ठर को
समझ आयी
मुझे
हुदहुद के
माध्यम से
वह बात
जो
सुनामी न समझा
सकी
पढ़ती गयी
खतों को
जीती गयी
पुराने पलों
को
पर
मुश्किल था
पढ़ना
विगत
चालीस साल का
जीवंत इतिहास
समयाभाव ने
याद दिला दिया
मुझे
जीवन की
निस्सारता का अहसास
कभी सोंचा था
मैंने
लिखूंगी
इन खतों के
माध्यम से
अपनी
आत्मकथा
और
जियूंगी
पुराने पलों
को
पर
अब स्थानाभाव
के कारण
एक कार्टन
अपने पुराने
पत्र , डायरी की पन्ने
विसर्जित कर
दिया
मैंने
अपने घर में
ही
पानी भरी
बाल्टी में ........
आज
मैं अकेली हूं
यादों के बोझ
से
मुक्त हूं
रेशमी व
खुरदुरे अहसास से
मुक्त हूं
समय ने
श्रमिक बना
दिया है
मुझे
जय हो !
हुदहुद तेरी |
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