25
October 2014
21:33
-इंदु बाला
सिंह
'
टंगले रहनीं ...खुंटिया कुल खा गईल '
हड़बड़ी में
अनायास
' मुसवा ' की
जगह
चाची के मुंह
से निकला
गलत शब्द
और
छोटी सी उम्र में
ठठा कर हंसना
आज भी
ला देता है
चेहरे पर
अकेले में
बरबस एक
मुस्कान
विशालकाय बखरी
के
आंगन की याद
दिलाता है
हम घर में
नहीं
घर
हममें बसता है
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