20
October 2014
11:59
-इंदु बाला
सिंह
काम का अवकाश
होते ही
मजदूरों का
अपना अपना
छोटा छोटा
समूह बन जाता
है
हर समूह में
कोई न कोई होता है
धनी
जो बांटता है
अपने घर की
पकायी सब्जी
वे
पानी भात
सब्जी संग खा के
लेट जाते हैं
सड़क के
किनारे
छायादार
वृक्षों के नीचे
यही
वह फुर्सत का
समय रहता है
जब
ठेकेदार नहीं
रहता है
पर
आ जाता है
मनिहारी वाला
रंग बिरंगे
क्लिप , सुनहले हाथ , कान के गहनों
से जगमग करता
चलती फिरती
पहियोंवाली
दूकान लिये
जिसे घेर लेती
हैं
जरीवाली साड़ी
, सलवार-जींस , शर्ट-स्कर्ट-लेगिंग्स पहनी
रेजागण
............
पैसे की कोई
बात नहीं
बिकता है माल
उधारी में ........
मिलेगा मोल
आज नहीं तो
शनिवार को
यह जानता है
मनिहारीवाला
भी
रेजागण लड़ती
नहीं हैं
महिला आजादी
की लड़ाई
वे जीती हैं
आज में
वे आजाद थीं
और
रहेंगी आजाद
जब तक समय
मजबूत रखेगा
उनके हाथ पांव
कल किसने देखा
है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें