13
November 2014
11:30
-इंदु बाला
सिंह
आधा पर्दा
लिहाज होता
है
झूठ नहीं
वह
घर की
खिडकियों में टंगा होता है
वैसे
घरों में सब
नंगे होते हैं
और
उनकी नस्लें
रात में
पर्दों से
फूटती आवाजों से पहचानी जाती है
पर
मेरे घर के
सामने एक खिड़की थी
जिसके पर्दे
की
दिखती थी
नित नयी सीयन
भोर भोर
मैं सोंचती थी
वह अकेला
इन्सान आखिर कितनी सीयन डालेगा
अपने इकलौते
रंगछूटे साफ पर्दे में
जरूर एक समय
आएगा
जब
सीयन के तागों
का ही पर्दा दिखेगा
और
पर्दे का मूल
कपड़ा छुप जायेगा |
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