10
November 2014
06:53
-इंदु बाला
सिंह
बाती
घबरा न तू
बस जलती रह
नेह भर दिया
है मैंने
तेरे तन में
मन
के शीशे से ढंका है तुझे
देख
जरा !
आज अमावस की
रात है
चाँद पर पहरा
है
धरती का
सुन
ओ री बाती !
काटना
है तुझे ही अंधियारा
मुझे दिख रहीं
हैं
दूरस्थ
आकृतियां
आग को तलाशते
लोग
गरजते बादल
कभी न बरसेंगे
गांठ बांध तू
सीख मेरी
बस
तू जलती रह |
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