शनिवार, 15 नवंबर 2014

अमावस की रात


10 November 2014
06:53
-इंदु बाला सिंह

बाती
घबरा न तू
बस जलती रह
नेह भर दिया है मैंने
तेरे तन में
मन के शीशे से ढंका है तुझे
देख जरा !
आज अमावस की रात है
चाँद पर पहरा है
धरती का
सुन ओ री बाती !
काटना है तुझे ही अंधियारा
मुझे दिख रहीं हैं
दूरस्थ आकृतियां
आग को तलाशते लोग
गरजते बादल कभी न बरसेंगे
गांठ बांध तू सीख मेरी 
बस
तू जलती रह |

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