शुक्रवार, 7 नवंबर 2014

सपनों का स्वेटर


07 November 2014
22:49
-इंदु बाला सिंह

सपनों का स्वेटर बुनते हैं हम
जरा सा नजर फिसली नहीं
कि 
गिर जाता है  फंदा हमारा
फिर
गिरा फंदा
उठाना काफी समय लेता है
कुछ व्यक्ति
एक क्या
दो दो स्वेटर बन लेते हैं अपने सपनों के
क्योंकि
मौसम उनकी मर्जी से चलता है
वैसे स्वेटर बेचने का धंधा भी बड़ा चोखा है
काफी दाम मिलते हैं
कुछ सिरफिरे
स्वेटर की गर्माहट की आस लिये
एक चादर ओढ़े
आजीवन बुनते रहते हैं स्वेटर
और
एक दिन
उनके हाथ से समय की सलाईयां गिर जाती हैं
अधबुना स्वेटर
कूड़े में चले जाता है |

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