शनिवार, 15 नवंबर 2014

चेतिये साहब


13 November 2014
17:18
-इंदु बाला सिंह
वक्त के साथ साथ बदल जाते हैं वे
पर
सपना देखते हैं
राह तकती खड़ी माँ का
मौसम से रहा पत्थर ही अछूता
यह भूल जाते हैं वे
धन मद में
पद मद में
अधिकार तो याद रहता है उन्हें
पर
कर्तव्य के समय
मजबूर हो जाते हैं वे
चेतिये साहब !
आपकी ही तरह
पुरानी पीढ़ी भी बदल रही है
और
पड़ोसी बुजुर्ग
आपको मुखाग्नि का सुख प्रदान करने हेतु
आपके जन्मदाता को
मोर्ग  में बचा कर रख रहे हैं
इतना आत्मसुख है आपका
कि
प्यार से कट रहे हैं
या
काट ले रहे हैं समय
विदेश में बैठ
सुना रहे हैं हमें देशभक्ति  गान |

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