06
November 2014
19:29
-इंदु बाला सिंह
क्या ही अच्छा होता
भोर न होती
सड़क पर फैली गन्दगी न दिखती
चाँद की रोशनी में
बस
हम चलते रहते
किस्से
कहानियाँ चलती रहतीं
बेटे विदेश न
जाते
घर
में बहुयें छम छम चलतीं
ननद भाभी ,
देवर भाभी की ठिठोली चलती
घर में बच्चों
की धमाचौकड़ी रहती
मन भी
कैसा आलसी है
बुद्धि को
डपट देता है कभी कभी
सत्य से परे
भागता है
और
काल्पनिक
दुनियां में जीना चाहता है |
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