रविवार, 23 नवंबर 2014

भोर का कोहरा


20 November 2014
20:27
-इंदु बाला सिंह

भोर के कोहरे को चीरता अस्तित्व  
दौड़ कर
तो कभी चल कर
पांच  मिनट में
सड़क पर चलते तीनपहिया को
पकड़ना प्रतिदिन
बहुत याद दिलाते हो तुम
ओ ठंड के मौसम !
सूनी सड़क पर बड़ा मजा आता था दौड़ने में
क्योंकि
कोहरा ढंक लेता था काया
केवल दिखती थीं
दूर से आनेवाली स्कूल बस की रोशनी .....
सुनाई पड़ते थे
दूर के
वाहनों के हार्न ....
कुछ मौसम
तो
कुछ अपनों से मिलते चेहरे
याद दिलाते हैं
बीते पलों को
और
मन अन्तर्मुखी हो जाता है
जितना चलते जाते हैं भीतर
उतना ही
स्पन्दनहीन बनते जाते हैं
हम |





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