शनिवार, 15 नवंबर 2014

अंधेरे में भी खुश हैं


10 November 2014
22:46
-इंदु बाला सिंह

याद आयीं
आज
बचपन की
वे
गाँव की रिश्तेदार औरतें
जो
कौतुक के केंद्र थी
नन्हे से मन की
आज दिला रही हैं मुझे
वे
समाज में अपना स्थान
जो
पौ फटने से पहले
और
रात गहराने के बाद
निपटने जाती थीं
वे औरतें
सोंचने को बेबस कर दीं मुझे
आज
क्या अंधकार में ही
सदा जीती रहेंगी हमारी बेटियां
क्योंकि
आज भी
बेटियों के अंधियारे आकाश में
अपनी राह खुद चुनने का रोशनी नहीं जगी है
वैसे
खुश हैं वर्तमान में जीती बेटियां
क्योंकि
प्यार के पिंजरें में
सिल्क की साड़ियों में
जेवरों से लदी फंदी शादी ब्याह के अवसर पर वे
गीत गाती हैं
मुस्काती हैं |

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