मंगलवार, 4 नवंबर 2014

दूर में जागरण है


04 November 2014
22:09
-इंदु बाला सिंह

' बोल सियावर रामचन्द्र की जय ! '
दूर से आती आवाज
और
रामचरितमानस के दोहे
कितने कर्णप्रिय लगते हैं
ये ही जोड़ते हैं
हमें
हमारे कालखंड से
जिस रामचरितमानस के दोहे गा कर
और
सुन कर
कटता था होगा
गाँव का अकेलापन
आज भी जोड़ देता है हमें
हमारी जड़ों से
' सीता जैसा भाग ने देंवे दयु ...' कह कर आंखें पोंछती वृद्धायें
याद आ जाती हैं गाँव की
काश !
आज भी हम उतने ही समवेदन शील होते 
जहां संतुलित हो आमदनी
वहीं बसता रिश्तों का बंधन
याद करती मैं वह कहानियों का गाँव
जहां हर बेटी
गांव की बेटी कहलाती है
रात अब गहरा रही है
और
दूर से आता मंदिर का धीमा स्वर
अब हमें
याद दिलायेगा
कि
हम अकेले नहीं है
कहीं दूर में जागरण है |


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