06
November 2014
19:40
-इंदु बाला
सिंह
बेटा बड़ा
होता गया
माँ का गौरव
बढ़ता गया
नौकरी लगी
बेटे की
ब्याह हुआ
बेटे का
और
व्यस्त होता
गया बेटा
माँ की
आवश्यकता नगण्य होती गयीं बेटे के जीवन में
अपने निर्णय
खुद लेने लगा बेटा
धीरे धीरे घर
में
माँ बस
मूर्ति बनती गयी
और पड़ोसियों
से झूठ झूठ बोलती गयी
अपने बेटे की
प्रशंसा करती रही
क्योंकि अब
बेटे का महत्व था
ब्याह
शादियों में बुलावा
बेटे को आता
था
पिता समझदार
होते हैं
मौन रहते हैं
पर
आत्म सुख
और
मान
भले वह झूठा
ही हो
माँ नहीं
छोड़ना चाहती कभी
पिता के जाने
के बाद
और ज्यादा
अकेली पड़ी माँ
सोये में
बड़बड़ाने लगी
अपनी बहू को
आदेश देने लगी
खाना बनाने
का
खाना
परोसने का .......
और
बिटिया
यह सब देख
सोंचती
दबंग क्यों
नहीं होती हैं माएं
अपने बेटों
से क्यों आस रखती हैं
क्या बेटे के
बिना
माँ
का अपना एक अलग अस्तित्व नहीं ?
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