रविवार, 30 नवंबर 2014

गुजर जायेंगे



01 December 2014
08:17

-इंदु बाला सिंह

राही हैं .....
गुजर जायेंगे
अपने पड़ाव पे
उतर जायेंगे
पर
हवा में
हम बस जायेंगे
और
मुस्कायेंगे
अपनों में ........
जियेंगें
हम उनके सपनों में |

मन के पंख भींग गये


30 November 2014
20:02
-इंदु बाला सिंह

बुद्धि सोयी थी
मन टहल रहा था
रात में
और
मिल गयी थी
एक पुरानी परिचित
चहक कर पूछ लिया उसने
सुना है आप कहानी लिखती हैं
भगवान की कहानी लिखती हैं क्या ?...
अरे नहीं ..ऐसे ही कुछ कुछ ..
पर
मन के पंख भींग गये
और
काफी दिनों तक भींगे रहे |

रात दिन का चक्र


30 November 2014
18:31
-इंदु बाला सिंह

रुकी रुकी सी सांसें
चलने लगती हैं
पौ के फटते ही ....
और
मुस्काता सूरज आ खड़ा होता है
मन की देहरी पर ......
कर जाता है
वह
निहाल मन को ........
बस
यों ही चलता रहता है
रात दिन का चक्र | 

शापित नहीं हैं हम


30 November 2014
12:23

-इंदु बाला सिंह

समय के झूले में झूल
सीख
पाठ समय से
बड़े हुये ......
कभी  न ठगा
अपने शिक्षक को हमने  ..........
तो
परशुराम सरीखा
कैसे शापित करेगा
हमें समय .........
कभी
न भूलेंगे युद्ध कौशल
रणस्थल में हम |

शनिवार, 29 नवंबर 2014

सोने दो


29 November 2014
23:58
-इंदु बाला सिंह

अब सोने दो
कि
बहुत चल चुके हम
चाह है
ढेर सारी बर्फ गिरे
और
सो जायें हम |

बुधवार, 26 नवंबर 2014

शानदार बिमारियां


26 November 2014
20:57
-इंदु बाला सिंह

उफ्फ !
कितने पिछड़ गये हम
मित्रों को हैं
डाईबिटिज , ब्लडप्रेशर
मुझे नहीं
कामवाली भी है इसकी शिकार
हाय !
कितने अभागे हैं हम
हमारे पास नहीं आतीं
ये बड़ी बड़ी शानदार बीमारियां
काश हम भी बैठ पाते
महफिल में
और
बातें करते
इन सदाबहार मेहमानों के बारे में |

परीक्षा में मिले अंक


26 November 2014
19:59
-इंदु बाला सिंह

दीदी .. दीदी ....
एक बात बताऊं मैं
हमारे गणित ट्यूशन में
ज्यादा नम्बर लानेवाले सोफे में बैठते
पास होनेवाले बेंच पर
और
फेल होनेवाले बैठते फर्श पर ....
कसक गये हम
और
अपलक देखते रहे 
उस
अष्टम श्रेणी के छात्र को
और
उठा मन में प्रश्न .....
ये कैसी सीख थी
शिक्षक की |

हाथ में जगन्नाथ


26 November 2014
19:18
-इंदु बाला सिंह

पुकारते हर पल हरि को तुम
हो सतकर्म से विमुख
देख
तेरी ही हथेली में
हैं छिपे
जगन्नाथ सपरिवार
वही हाथ लगायेगा तुझे थप्पड़
और
मांगेगा तुझसे हिसाब
तुझ द्वारा काटे गये हाथों का
और
तेरा महाकाल देगा
तुझे
इक दिन जरूर अपना दर्शन |

जेबें भरी हैं


26 November 2014
18:41
-इंदु बाला सिंह

अनगिनत जेबें
मेरी पैंट में
क़ानून
धन
स्वदेशी
मेरी जेब में
घूमूं मैं अलमस्त
मेरी गली
मेरी है पहचान
आ दिखलाऊं तुझे
मैं
रंगीनी बेशुमार |

समय की सीख


26 November 2014
17:03
-इंदु बाला सिंह

सिखाया समय ने ......
सीख मेरे यार
दुनिया है व्यापार
दुखी मन से
मन ने सीख लिया
और
रटने लगा तोते सा
सब सम्हल गये
पर
मन न सम्हला
बस उड़ता रहा
इस डाली से उस डाली पर
बैठ
रटता रहा .....
उड़ता रहा ..........
अपने मनचाहे आकाश में |

मंगलवार, 25 नवंबर 2014

हम व्यस्त रहे



तुम खरीद लोगे 
हमारे आंसू भी 
इसलिए 
हमने अपनी आंखें पथरा लीं
और 
व्यस्त होने का दिखावा करते रहे |

सोमवार, 24 नवंबर 2014

अहा आये हम स्वदेश


24 November 2014
23:21
-इंदु बाला सिंह

क्या खूब रही
कितनी सस्ती चीजें मिलती भारत में
आओ
भारत में खाली हाथ
खरीद कर ले जाओ सूटकेस भर कपड़े
आदमी भी तो हैं सस्ते
कित्ते सस्ते
सुख भोग लो
क्या बात है
बड़ी शान है हमारी ......
अरे भई लौटा है
हमारा अपना विदेश से
कितनी लम्बी हुयी है नाक हमारी |

भगवान के नाम पाती


25 November 2014
05:25
-इंदु बाला सिंह

लो जी
कल रात
लिख मारी मैंने
पाती
भगवान के नाम
पते की जगह लिख दिया
भगवान को मिले
और डाल दिया लेटर बाक्स में
अब
परेशान डाकिया ढूंढ रहा होगा
भगवान का ठिकाना
और
आज निश्चिन्त हूं |

चिंगारी सुलग रही


24 November 2014
19:13
-इंदु बाला सिंह

बंद न होंगे
अब
तेरी गुफा में हम
भेड़ सरीखे .....
कि
सुलग रही है चिंगारी
आज
हर दिल में |

चल चलें


24 November 2014
19:02
-इंदु बाला सिंह

पकड़ मेरा हाथ
चल
चलें हम दूर 
कि
तेरे छोटे हाथों में
थमाना है मुझे
तेरा इन्द्रधनुष
और
तेरी आँखों की चमक में
दिखेगा मुझे
मेरी साधना का विम्ब
ओ मेरे अंश !

जगना है कल फिर


24 November 2014
18:59
-इंदु बाला सिंह

रात भई
सब सोये
तू भी सो जा मन
कि
अभी
नहीं उतरा है
तेरे कांधे का बोझ
और
जगना है तुझे
कल फिर भोर भोर |

जागो सूरज


24 November 2014
18:53
-इंदु बाला सिंह

जागो सूरज
कि
तुम जागोगे तो भोर होगी
अंधियारा
है गहरा रहा
सुनो तुम
हाथ पैर सुन्न हो रहे अब |

सन्नाटा


24 November 2014
18:40
-इंदु बाला सिंह

कौन है ये
जो
समा रहा धीरे धीरे
सामने दिख रही भीड़ में
और
सन्नाटा है जता रहा
आंधी की आशंका |

दिन की दास्तान


24 November 2014
18:33
-इंदु बाला सिंह

उड़ चिरैय्या !
उड़ !
कि
जब तक है
मन में
आंगन का मोह
कैसे मिलेगा तुझे तेरा आकाश
पंख पसार
उड़ जा री दुलारी
सांझ ढले घर आना
और
सुनाना
दिन की दास्तान |

रविवार, 23 नवंबर 2014

कम्प्यूटर जी !


23 November 2014
10:03
-इंदु बाला सिंह

कम्प्यूटर जी !
तुमको
जाड़े की धूप क्यों नहीं भाती जी !
बड़ा मन करता मेरा
लिखने को चिट्ठी दोस्त को
और
भेजना चाहूं उसे मेल में
बैठ के धूप में
पर
तुम झट छुप जाते अंधेरे में
जो भी लिखता मैं
नहीं दिखता है मुझे
अब तुम ही बताओ मैं क्या करूं |

हारनेवाले की कहानी


23 November 2014
07:35
-इंदु बाला सिंह

दुनिया एक खेल है
यहां
कोई जुआड़ी
तो
कोई अनाड़ी
हारनेवाला भी जीत जाता है कभी कभी
दम ले ले जरा
क्या पता तेरा दंभ
कल
रहे रहे
पर निशानियां रहेंगी तेरी
कहानियां रहेंगी तेरी
बच्चों को सुलायेंगी माएं
सुनाकर हारनेवाले की जीत की कहानियां |

ईश्वर अंधा है


22 November 2014
22:08
-इंदु बाला सिंह

कोसते हैं हम
जब जब
ईश्वर को ...
लगता है ईश्वर अंधा है
उस वक्त
हम खुद को कोस रहे होते  हैं
झिंझोड़ रहे होते हैं
क्योंकि
लाख कोशिश करने पर भी
परिस्थितियां 
वश में नहीं रहतीं हमारे
कभी कभी ........
और
ईश्वर तो हमारी चेतना में ही रहता है |

थक गये हम

22 November 2014
18:51
-इंदु बाला सिंह

थक गये
रे भैय्या
पक गये हम अब
सुन सुन  
बारम्बार एक ही वीरांगना का नाम
जग सूना हो गया क्या
और
कोई न पैदा हुयी
सफल न हुई
युद्ध में 
या
तुमने सब का मनोबल तोड़ दिया
दिखला कर
एक ही सफल चेहरा |

शहर हुआ बंद और खुली गठरी


22 November 2014
07:05
इंदु बाला सिंह

लो जी
हो गया है ...
आज शहर बंद
छात्र खुश हैं
मस्त हैं
अपने घरों में
और
खुल गयी छूटे कामों की गठरी
अध्यापिका जी की .....
चलूं मार्निंग वाक कर लूं
अलमारी की किताबें सजा लूं
डायरी के पन्ने पलट लूं
मुंह फेरे रिश्तों को धकेल दूं
कमरे का झाला साफ़ करूंगी तो मन भी तो साफ़ हो जाएगा न
और
चाय की सिप के संग दुनिया भी जी लूं
लो भई
अब तो रोशनी प्रखर हो गयी
देखूं अब घर का हाल
प्रश्न पत्र तैयार होगा दुपहरिया को |

ढूंढें मन बचपन


21 November 2014
19:31
-इंदु बाला सिंह

काश !
हम बच्चे होते 
अक्ल के कच्चे होते 
चुनते पके आम अमराई में
खेलते कंचे 
लडकों के संग मैदान में
आज आयी याद
ओ बचपन ! तेरी
क्यों
खो गया तू
कहीं |


उड़े रुपईय्या


21 November 2014
08:25
-इंदु बाला सिंह

जय हो तेरी !
नोट तेरी जय !
तेरी महिमा अपरम्पारा
ऑनलाइन कंट्रोल करता तू
सबको
कितना दबंग है तू
हैरत से  देखूं मैं तेरी महिमा
कागज का है तू
पर
कितना उड़ता तू आसमान में
और
तेरी धुन पे
नाचे जग सारा
बौराता सड़क पे
क्या होगा तेरा
ओ रुपईय्या !
बारिश के मौसम में
सोंचता है आज
ये बालमन |



मीडिया है अम्मा


20 November 2014
22:25

-इंदु बाला सिंह

मीडिया ही है प्यारी साथी
बच्चों की
बच्चा रोया
टी० वी० का कार्टून चैनेल शुरू
रात हुयी ……..
बच्चों के लिये
है न
टी० वी० का स्पोर्ट्स चैनेल
कहना नहीं सुनता है बच्चा
तो कोई बात नहीं
खोल दो न भई टी० वी०
बच्चा नाचता है
टी० वी० के हीरो संग
तो भई
पापा मम्मी गच्च है
लो !
मीडिया तो
अब
बच्चे की अम्मा हो गयी |

जड़ खोदते हो क्यों !


20 November 2014
21:45
-इंदु बाला सिंह


तुम्हारा
जड़ें खोदना मेरी
मुझे
अहसास दिलाता है मेरी गहराई की
वैसे
यह भी चिरन्तन सत्य है
कि
विशालकाय वृक्ष जब गिरता है
तब
दब ही जाते हैं
निकटस्थ अपने
चाहे वे कितनी ही सावधानी
क्यों न बरत लें
पर
वृक्ष गिराना तो  गैरकानूनी है  न |

भोर का कोहरा


20 November 2014
20:27
-इंदु बाला सिंह

भोर के कोहरे को चीरता अस्तित्व  
दौड़ कर
तो कभी चल कर
पांच  मिनट में
सड़क पर चलते तीनपहिया को
पकड़ना प्रतिदिन
बहुत याद दिलाते हो तुम
ओ ठंड के मौसम !
सूनी सड़क पर बड़ा मजा आता था दौड़ने में
क्योंकि
कोहरा ढंक लेता था काया
केवल दिखती थीं
दूर से आनेवाली स्कूल बस की रोशनी .....
सुनाई पड़ते थे
दूर के
वाहनों के हार्न ....
कुछ मौसम
तो
कुछ अपनों से मिलते चेहरे
याद दिलाते हैं
बीते पलों को
और
मन अन्तर्मुखी हो जाता है
जितना चलते जाते हैं भीतर
उतना ही
स्पन्दनहीन बनते जाते हैं
हम |





पुरातनपंथी सिरदर्द उपदेश


20 November 2014
19:03
-इंदु बाला सिंह

लड़को के बराबर
हक मांगनेवाली लडकियां
लडकों सा
कर्मठ तो बनें ......
मनचाहे बेढंगे कपड़े पहन
सड़कों पर घूमनेवाली लडकियां
लड़कों सा नित एक सरीखे कपड़े में
चलना तो सीखें .....
विचित्र कपड़ों में शाम को चहकना
बंद करें बेटियां ......
अभी अभी गुजरनेवाले मोटर साईकिल सवार के
मुंह से निकला शब्द ...
रंडी है बे रंडी ...
उतना ही पुलिस से पिटायी का हकदार है
जितना कि तुम .....
आरक्षण और प्रगतिशील के नाम पर
लडकियों तुम
जन्मदाता का नाम रौशन कर रही हो ......
पीठ पर कालेज बैग टांग के क्यों घुमती तुम
उपहार लेना बंद करो 
जरा कमाना भी तो सीखो
लडकियों |


शनिवार, 22 नवंबर 2014

गुम जायेगा आत्मीय


20 November 2014
14:55
-इंदु बाला सिंह

कुछ भी तोड़ो चलेगा
पर
विश्वास न तोड़ना
किसी आत्मीय का
क्योंकि
जिस दिन मन टूटेगा
उस दिन
खो जायेगा वह स्वजन भीड़ में ......
दुःख के कारण ही
रच गयी रामचरितमानस ........
यह तो
बस कहने की बातें हैं ...........
वह काल गया
व्यक्ति की भावनायें बदलीं |

जातिहीन होती है बेटी


20 November 2014
12:29
-इंदु बाला सिंह

कामवाली की बिटिया पर
मोहित सासु माँ
को देख सोंच रहा मन
क्यों नहीं
इसे ही
अम्मा बहू बनायी
आखिर
जात तो नहीं है न होती 
किसी बिटिया की |

उठी पुकार


20 November 2014
07:15
-इंदु बाला सिंह

ओ रे जगबंधु !
उठी जो पुकार भोर भोर
उस रिटायर्ड कैंसर से जंग जीती महिला की
तो
घर बोल उठा
आह्वान कर उठा परमसत्ता का
हार गयी फ़िल्मी भजन
और
शंखनाद की आवाज ने
जगाई शक्ति सोये घर की
मैं हूं अभी .......
आलोकित होने लगा आकाश ........
अड़ोस पड़ोस में भी भोर हो रही थी |

माँ की शान है बेटा


19 November 2014
20:19
-इंदु बाला सिंह

बैग में
रुपय्या
बगल में बेटा
ये लो !
देखो जीती
मैंने आज दुनिया
कल की
कल सोंचेंगे
आज हूं मैं ..... दबंग ....दबंग .....
अरे !
डर गये क्या !
बड़ा मजा आया
आखिर बेटे की माँ हूं |

अजब कहानी तेरी


19 November 2014
19:55
-इंदु बाला सिंह

अपने को
जिसने खो दिया
उसने जग खो दिया
गजब है !
कि
राजनीति करने वालों ने
माँ को ही अपना सुरक्षा कवच बना लिया
अजब कहानी तेरी
माँ
तू
कभी देवी बनी
तो
कभी बनी धरती
जग तुझे इन्सान तो बना न सका 
पर
तुझे कभी कामवाली
तो

कभी डायन जरुर बना दिया |

बहेंगे हवाओं में


19 November 2014
19:38
-इंदु बाला सिंह

कैसी खोज है
ये
किसी अनागत सपने की
जिसकी खोज में
चलते रहे हम
और एक तन्द्रा में डूबे रहे सदा
वर्ष दर वर्ष
पर
अबकी नींद टूटेगी
तो  
बहेंगे
हम हवाओं में
नित

सुबहोशाम |

शहर बंद की घोषणा


19 November 2014
14:20
-इंदु बाला सिंह

अखबार जी !
आप क्यों छापते जी
उल्टी सीधी खबरें !
स्कूल ने सिखा दिया है
बच्चों को अखबार पढना
शामत आयी
मेरी तो
कूद रहे हैं घर में बच्चे
' शहर बंद ' की खबर पढ़ के
प्लान अभी से बन रहा है
घर में
उस दिन होनेवाली मस्ती का
आखिर स्कूल बंद रहेगा न
' शहर बंद ' के दिन |

अकेले सींचना आसान नहीं


12 November 2014
16:19
-इंदु बाला सिंह

कितना कठिन होता
अकेले ही सींचना
हर रिश्ते को
और
जीना अकेले ही
क्योंकि
समाज विद्यालय नहीं
जहां
रट के पास हो जांय
हम
नैतिकता का पाठ
हर पल
भारी होता  यहां
राजनीति पलती है घरों में
लोग कहते ....वादे होते हैं तोड़ने के लिये
पर
मैं कहूं .......सम्मान मिलता है हमें अपमानित करने के लिये |


मंगलवार, 18 नवंबर 2014

लपक ले समय


19 November 2014
07:46
-इंदु बाला सिंह

उस बिटिया पे
क्या नाज करूं मैं
जिसे 
समय ने बनाया वीरांगना
अरे !
दम है
तो
बढ़ आगे
ओ री बिटिया !
लपक ले मुट्ठी में समय
आज तू
कि
धरती करवट बदल रही है
और
पौ फट रही है |

सोमवार, 17 नवंबर 2014

मुट्ठी में है वक्त


18 November 2014
07:17
-इंदु बाला सिंह

जमीं पर था बुलाया तुमने
आया हूं मैं तेरे पास 
ले वक्त अपनी बंद मुट्ठी में
खुलेगी जिस दिन
बंद मुट्ठी मेरी
उस दिन
मैं नापूंगा जमीन |

मन के रंग


17 November 2014
12:50
-इंदु बाला सिंह

हवा है मन
बिन टिकट उड़ता
हवाई जहाज में
खेलता
छुप्पा छुप्पी बादल संग आसमान में
दिन में बनता इन्द्रधनुष
और
रात में ध्रुवतारा
आशा की पतंग उड़ाता
कभी दुर्लभ पंछी बन जाता
तो
कभी सुनहरी मछली
ओ रे मन !
तेरे कितने रंग ?

बुड्ढा बच्चा


17 November 2014
08:17
-इंदु बाला सिंह

बच्चा कहना न सुने
तो
दे मारूं मैं एक थप्पड़
पर
बुड्ढे बच्चे का क्या करूं
हाय रे इण्डिया !
कितना मुश्किल होता है
घर में पालना
पुरनिया महिला को |

बपौती


17 November 2014
07:14

-इंदु बाला सिंह 

जाड़े की सुबह 
गर्मा जाती है सड़क ......
ट्राउजर और टी शर्ट में दौड़ती 
युवती ने 
सामने से आते युवा को कहा .....
नमस्ते भैय्या !
और 
अपनी बगल की बुजुर्ग महिला को 
धक्का देते हुये 
बढ़ गयी आगे 
उस बुजुर्ग महिला ने 
खुद को बचा लिया गिरने से .....
इस दृश्य का 
कोई असर पड़ा 
सामने से आते चार पुरुष बुजुर्गों पर 
वैसे 
हम ट्रैफिक रूल तो 
याद रखते हैं 
अपनी सुविधा के लिये 
लेकिन दूसरी तरफ 
पार्क की पुरुष बपौती को तोड़ रहा था 
एक युवा दुबला पतला जोड़ा 
जो दौड़ रहा था 
बराबरी में 
एक दुसरे की गति में संतुलन बनाते हुये 
और 
पाठ पढ़ा रहा था 
स्त्री पुरुष की समानता का ........
ताकत का 
वक्त !
तू बड़ा क्रूर शिक्षक है 
पीट पीट कर पढ़ाने लगता है पाठ
हमें भोर भोर |