शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2014

नैतिकता का ढोल


28 October 2014
19:08
-इंदु बाला सिंह

न जाने कैसे
पहुंच जाते हैं लोग विदेश
और
स्वदेश व विदेश में खरीदते हैं मकान
कितना आसान होता है
धन कमाना
विदेशों में
सोंच सोंच हैरान हूं मैं
इतना ही नहीं
जब लौटते हैं स्वदेश वे
नर्क बनाते हैं
अपनों का जीवन
कौन कहता है
कर्मफल मिलता है
और
धन कमाना कठिन है
जिसके पास
कलेजा है
वही दबंग है
बाकी लोग
बस नैतिकता का ढोल 
बजाते ही
रह जाते हैं |


स्कूल का आखिरी दिन


28 October 2014
15:45

-इंदु बाला सिंह

टीचर की अनुपस्थिति में
कर ली मस्ती
दसवीं कक्षा के छात्र और छात्राओं ने
रंग दिया
लिख कर एक दुसरे का सफेद शर्ट ....
I love you
I miss you
और
मिली सजा ......
खड़े रहो एक घंटे प्रिसिपल के आफिस के सामने
स्कूल की छुट्टी के बाद
अभिभावकों के घर पहुंचा मेसेज स्कूल से
और
मिली सजा
पर
कभी कभी सजा भी मस्त होती हैं
याद रहती हैं
हमें
आजीवन ,
स्कूल की छुट्टी के बाद
जब बारहवीं कक्षा के छात्रों ने देखा
दसवीं कक्षा के
सजा प्राप्त छात्रों को
तो
वे पूछने लगे
आपस में .....
क्या हमारा भी आख़िरी दिन है विद्यालय का आज
क्योंकि
वे सोंचने लगे कहीं हमने
खो तो नहीं दी
स्कूल की
आख़िरी दिन की मस्ती |

वृद्ध मन


28 October 2014
11:57
-इंदु बाला सिंह

सास ननद के अत्याचार
पे लिखनेवालों ने
प्रेम में भींगी रचना के साथ
गर
रंग बदलती पढी लिखी गृहणी बहू पर भी
दो पंक्ति लिखी होती
वृद्ध मन के साहित्य का भरमार होता
और 
बूढ़े सास ससुर का बुढ़ापा
सुधर गया होता
ओल्ड होम की संख्या घटी होती |

कैसे करूं बराबर


28 October 2014
10:58
-इंदु बाला सिंह

ब्याहता होना
लड़की का सौभाग्य
और
लड़के का उद्देश्य
अब
कैसे करूं
मैं
अपनी तराजू में
आज
दोनों को बराबर
सोंच में पड़ गयी मैं |

नशेड़ी


28 October 2014
10:22

इंदु बाला सिंह

नशा बोलता है
शराब खोले मन की दीवारें
भागो नशेड़ी आया |

पिता की बेटी


28 October 2014
08:55
-इंदु बाला सिंह

जयचंद को कोसनेवालों ने
पिता का दिल न देखा
सयोगिता का अंत वे भूल गये
कितनी संयोगितायें  आज गुम है
क्यों याद रखें हम
हम तो
जन्माते ही नहीं संयोगितायें |

संस्कार के रूपये


28 October 2014
08:10
-इंदु बाला सिंह

मौत ही मुक्ति है
मान उस योद्धा ने
लड़ ली अपनी लड़ाई
अपनों से
वह
रखा रहता था
अपने संस्कार के रूपये
सदा अपनी जेब में
क्योंकि 
वह
अहसान नहीं लेना चाहता था
किसी का
पर
जाते वक्त उसकी आंखे
न जाने किसका इन्तजार कर रही थीं
लोग
कहते हैं
उसके प्राण निकले होंगे

आँखों की राह से |

बुधवार, 29 अक्टूबर 2014

खुशबूदार बिटिया


27 October 2014
05:54
-इंदु बाला सिंह

प्रेम के सागर में
डुबकी लगती खुशहाल खुशबूदार बिटिया
कब
कामवाली बन जाती
हर रिश्ते की
वह समझ ही न पाती
और
जब तक
वह समझ पाती ,
उस पर मोहर लग चूका होता
कामवाली का
उसे किसी आफिस में भी
गर नौकरी मिलती
तो
बस तृतीय श्रेणी दर्जे की ही मिलती |

ब्लैक में दूध


26 October 2014
23:46
-इंदु बाला सिंह

हाथ में
दूध का पैकेट पकड़ते हुये
कहा दुकानदार ने ....
दूध तो
अब ब्लैक में मिल रहा है
अरे !
आपको मालूम नहीं
दूध अब बाढ़ग्रस्त इलाके में जा रहा है
और
उसने मुझसे दो रूपये वसूल लिये
मैंने सोंचा ..
सुनामी के समय दूध ब्लैक नहीं हुआ था
तो
भला हुदहुद के समय क्यों
पर
जब दुसरे दिन ग्यारह बजे ही
दुकान के दूध का स्टाक खत्म हो जाने की घोषणा कर दी
तब
दुकानदार सच्चा लगने लगा मुझे |

मनोबल एक धनी बिटिया का


26 October 2014
22:15
-इंदु बाला सिंह

पड़ोसी की
बिटिया
धन बल से
पास हुई बी० टेक० , एम० टेक०
और
बनी लेक्चरर ,
पर
उस दो बच्चों की माँ ने
घर में बीमार सास ससुर के रहने पर भी
जब
बयालीस वर्ष की उम्र में
अपनी नौकरी की परमानेंसी के लिये 
लिया पी० एच० डी० में एडमिशन
तब
मन ही मन
मैंने सलाम किया
उस बिटिया के मनोबल को
और

उसके समझदार पति को |

जी लेता है


26 October 2014
15:55
-इंदु बाला सिंह

लाज
लिहाज करनेवाला
अच्छे दिन के इन्तजार में
मिट जाता है
गुमनाम
पर
जी लेता है
अपना भरपूर जीवन  
एक
दबंग इंसान |

हम दो हमारे दो


26 October 2014
10:14
-इंदु बाला सिंह


बड़ी किस्मतवाली होती हैं
कामवालियां
क्योंकि
जन्म लेते हैं
उनके घर में
केवल पुत्र
वो भी
मात्र दो

जय हो तेरी |

मातृत्व उपहार है


26 October 2014
07:22
-इंदु बाला सिंह

मातृत्व अहसान नहीं 
उपहार है
जीव जगत को
प्रकृति का
दुहाई देना बंद करें हम
मातृत्व का
जरूरत है हमें
आज
मात्र समझदारी की
क्योंकि

इंसान हैं हम |

घर हममें बसता है


25 October 2014
21:33
-इंदु बाला सिंह

' टंगले रहनीं ...खुंटिया कुल खा गईल '
हड़बड़ी में
अनायास
' मुसवा ' की जगह
चाची के मुंह से निकला
गलत शब्द
और
छोटी सी  उम्र में
ठठा कर हंसना
आज भी
ला देता है
चेहरे पर
अकेले में
बरबस एक मुस्कान
विशालकाय बखरी के
आंगन की याद
दिलाता है
हम घर में नहीं
घर
हममें बसता है |

गुलाबी गर्माहट जोड़े हमें


25 October 2014
10:15
-इंदु बाला सिंह

साहित्य जोड़े
दिलों को
रहो तुम सागर पार
या
स्थल बार्डर पार
आओ पढ़ें
हम उन दिलों को
जो
मिल न सके कभी
और
थे वे
एक ही सागर की सन्तान
चलो
इस धरा की
गुलाबी गर्माहट में
आज
मनायें हम
मानवता का त्यौहार |

हम अंग्रेजी बोलते हैं


25 October 2014
08:14
-इंदु बाला सिंह

अंग्रेजी बोल
बन जाते हैं हम साहब
ढंक लेते हैं
अपने अपने छाले
और
अप्राप्य बन जाते हैं
हम तो
आम आदमी हैं
अंग्रेजी के फटे पर्दे सीते हैं |

शुक्रवार, 24 अक्टूबर 2014

कहानी कहते कहते


25 October 2014
00:04
-इंदु बाला सिंह

कहानी
कहते कहते
माँ ने
जब आखें खोलीं
तो देखा 
उसने अपनी सन्तान को सोते हुये
और
कहानी कहना उसका सार्थक हुआ
लेकिन
उसकी  नींद चली गयी
क्योंकि
वह
अब अपने बचपन में
चली गयी थी
और
उसके बगल में
भूत की कहानी सुना के
सोयी चाची 
फुस फुस आवाजें निकाल रही थी ........
वह
बड़ी बड़ी आँखों से
कच्चे दालान की अंधेरी दीवारों पर
चुड़ैल को ढूंढ रही थी |

समाज कल्याण


24 October 2014
23:47
-इंदु बाला सिंह


तुम्हारा
अपना भूखा मरा
और
आज करते
तुम दान
ओल्ड होम में
खरीदते आशीर्वाद
फोटो छपती तुम्हारी
अखबार में
वाह रे !
समाज कल्याण तेरा |

अद्भुत आदमी


24 October 2014
23:34
-इंदु बाला सिंह

आदमी भी
क्या चीज है
जब तक दम है
बुनता है
वह
जाल
फिर काट के
अपना ही बुना जाल
उड़ जाता है
उपर न जाने
किस जहां में
चुपचाप पंख पसार
कहीं कोई
हलचल नहीं
बस
कर्मकांड चाहिये
जीते जी
पहचाने नहीं जिन्हें
उनके लिये
पिंडदान किये
इतना भी क्या डर उनसे
जो चला गया
यहां से |

गुरुवार, 23 अक्टूबर 2014

कुंडली नहीं मिली


24 October 2014
09:17
-इंदु बाला सिंह

कैसी कुंडली
कौन सी कुंडली
कौन सी तिथि होती है
ब्याह की
ब्याह होता है
लड़की लड़के का
मिला नहीं सकते कुंडली
तो
हम चले करने ब्याह
कोर्ट में
हमारे अपने
हमारे जन्मदाता हैं

अपने साथ |

मन न हारना


24 October 2014
07:51

-इंदु बाला सिंह

मन के हारे हार है
मन के जीते जीत
सुन ले प्यारे !
मेरे दुलारे !
हारने न देना
कभी अपना मन
भूलना न कभी
सुनामी
महसूसा हाथी ने ........
मतवाला हो भाग चढ़ा था
उंची पहाड़ी पर
महावत की अनसुनी कर
महसूसा था मछलियों ने भी
छुप गयी थीं वें
समुद्र की गहरायी में
हर सुनामी
क्षणिक होती है
जिसके बाद
हर सचेत सजीव की जीत है |

मनोबल की करवटें


24 October 2014
07:14

-इंदु बाला सिंह

बुद्धिजीवी पिता
का खत
पढ़ खूब हंसे थे ससुराल में ......
हा हा हा
तुम अपना ख्याल रखना
पत्नी
घर में तीसरे दर्जे की इंसान होती है
और
जब
वह अभाव , मनोबल व बुद्धि के बल पर
बन चुकी 
प्रथम दर्जे की इंसान
तब
पाया उसने
कि
वह
अपने बुद्धिजीवी पिता की
पैतृक सम्पत्ति की भी हकदार न थी
कितना उपहासास्पद होता है
अपनों से लड़ना
यही
वह बिंदु होता है
जब  मनोबल की परीक्षा होती है
जिस परीक्षा में
हारती रही है
हर बहन |

कामवाली


23 October 2014
11:20

-इंदु बाला सिंह

कामवाली
कभी बहू है  
तो
कभी बेटी
पर
बेटी
तो मेहमान है
घर की
और
आजकल मेहमान को
लोग एक दिन ही रखते हैं
घर में
रात तो मेहमानों की
उस टू स्टार होटल में गुजरती है 
जिसका
किराया बेटी खुद देती है
लेकिन
बहू ही बेटी है
क्योंकि
वह
आती है
अपने ससुर की तेरही में
आखिर
लोकलाज भी कोई चीज होती है
कामवाली
कितना पूण्य बटोरती है
सेवा करके
मुहल्ले के बुजुर्गों की
यह
दिखता है
हमें
कामवाली के
चमकते चेहरे पे
उसके भरे पूरे

खुश स्वस्थ खिलखिलाते परिवार में |

गुमनाम बच्चों के हिस्से की खुशी


23 October 2014
09:06

-इंदु बाला सिंह

चोरी नहीं होते
दीये अब
कहते हैं
दीवाली के दीये चोरी होने से
घर की
लक्ष्मी चली जाती है
इसलिये
रात को सोने से पहले
समेट लेते थे
हम
अपने दीये
पर
अब नहीं चुराते
दीये
अभावग्रस्त बस्ती के
गुमनाम बच्चे
क्योंकि
वे
आज समझदार हो चले हैं
उन्हें
पता है
कि
उनके घर में
आज
तेल नहीं है
और
कल भी नहीं रहेगा
इसलिये
वे
रात में 
दूर से देख दीपावली की रोशनी
खुश हो लेते हैं
और
भोर भोर दौड़ पड़ते हैं
ढूंढने
अधजले पटाके
न मिले
कुछ
तो बस खेल लेते हैं
सड़क पर पड़े
फुलझड़ी के डिब्बे के रगीन चित्रों  से
फिर
चुनते हैं
लोहे के तारों को
जो बिकने पर देते हैं
उन्हें
उनके हिस्से की
खुशी |

जोरदार आंधी


22 October 2014
22:28

इतनी
उछल कूद के बाद
कुछ बुद्धिजीवी सन्नाटा  मार लिए हैं .......
कुछ चौकस हो गये हैं
जब जब
मौसम में स्थिरता आयी  है
तब तब
जोरदार आंधी आई है
परिवर्तन की |

बुधवार, 22 अक्टूबर 2014

भगवान थे गूंगे


22 October 2014
21:10
-इंदु बाला सिंह


बेटी को
न तो
माँ मिली वसीयत में
और
न ही भगवान
क्यों कि
माँ पैसेवाली थी
और
भगवान थे गूंगे |

प्लास्टिक मनी


22 October 2014
11:42
-इंदु बाला सिंह

कितनी अच्छी होती है
प्लास्टिक मनी
पर्स में पड़ी रहती है
प्यारी प्यारी सुरक्षित मनी
सास  मांगे रूपये तो
हम कहते हैं
अम्मा !
रूपये रहते तो जरूर देते
मेरे पास तो
खाली कार्ड रहता है
दुकान में स्वाईप कर के सामान लेती हूं
और
हम मीठे बने रहते हैं
शाम को
आयेंगे आपके बेटे
तो दूंगी आपको
उनसे मांग के | 

इंश्योरेंस


22 October 2014
09:16
-इंदु बाला सिंह

हांये !
आपने साईन कर दिये
सादे पन्ने पर
पाने के लिये लाईफ-इंश्युरेंस के रुपये
बोली थी मैं उस दिन
और
कहा था उसने
क्या करती
वापस लौटना था
मुझे
अपने बच्चों के पास |

क़ानून राजा नहीं है


22 October 2014
07:15
-इंदु बाला सिंह

कानून
क्या सांता क्लाज है
जो बांटेगा
उपहार बच्चों को
रात में
या
वह राजा है
जो घूमेगा रात में
भेष बदल कर
और
सुनेगा
हर घर की बातें
समस्यायें
जिन्हें सुलझायेगा
वह
सुबह दरबार में
क़ानून तो
बस
हमारी तरह ही आम आदमी है
तभी तो 
सोया रहता है
किताब में |

दिवाली की मिठाई


21 October 2014
23:25
-इंदु बाला सिंह

जग में
सबसे बड़ा रुपईया
बाप बड़ा न भईया
त्यौहार की चमक मांगे रुपईया
कितने किलो चावल का
मोल है
दिवाली की मिठाई
यह तो समझे
केवल घर का मुखिया
बच्चे तो
बस बच्चे हैं
चहकते रहते  हैं
जब तक बाप जिन्दा है |

सोमवार, 20 अक्टूबर 2014

मन शांत है


21 October 2014
10:58
-इंदु बाला सिंह

कल शाम
दिखाया था
सच ने
अपना विशालकाय रूप
दुखी मन को
और
कहा था  ........
मत समझ
खुद को
कभी अकेला
तू
तेरे साथ रहा हूं
और
रहूंगा
जब तक तू है जीवित
तब से ही
मन शांत है
और
अबोध शिशु बन गया है |

पेट की भूख


21 October 2014
08:48
-इंदु बाला सिंह

भौंचक हो
देखा मैंने उस
टी० शर्ट पर सूती शर्ट पहनी
बेलचा चलाती लड़की को
जिसके
शर्ट के बटन खुले थे
और
कमर में बाँधा था उसने
एक गमछा
मिटा दिया था उसने
कर्म क्षेत्र में
लिंग भेद
पेट की भूख
तो
बस भूख ही रहती है
न होती उसकी
कोई जाति
समझा गयी वह
शारीरिक श्रम की कमाई खानेवाली |

प्रतिभा की पहचान


21 October 2014
08:25
-इंदु बाला सिंह

दिखाया था
जिस दिन तुमने ........
ये देखो
ये मंगल सूत्र और साड़ी पहनी औरतें
आम औरतें नहीं हैं
वैज्ञानिक हैं
तब से
हर प्रतिभावान बिटिया की पहचान
बन गयी है मंगल सूत्र
और
उस दिन से
सुनार के दुकान में
खूब बिक रहा है
मंगल सूत्र
ऊंचे दाम में
क्योंकि
अब वह
प्रतिभा की पहचान बन गया है |

नींद आ गयी ज्ञानी को


21 October 2014
07:27
-इंदु बाला सिंह

कहते हैं
सूद की कमाई
फलती नहीं
पर
भाई के हजम कियेगये 
रूपये
बहन के
हक पे खड़ी
इठलाती दीवार
कैसे
फलती है
जब पूछा स्कूल के छात्र ने 
तो
नींद आ गयी
ज्ञानी दिग्गज को
और
तब से
हर काल में
हर सचेत छात्र पूछता है
अपने आप से
इतने कम समय में
इतनी बड़ी अट्टालिका कैसे बनाया
कल का आम आदमी |




मेरा मकान कौन सा ?


20 October 2014
17:46
-इंदु बाला सिंह

पिता का मकान
भाई का .....
पति का मकान
पुत्र का .....
मेरा मकान
कौन सा ?
कहाँ मैं दीप जलाऊं
कहाँ मैं दिवाली मनाऊं ......
क़ानून गया तेल लेने
ये कैसा प्रश्न पूछा तूने !
हंस कर कहा 
माँ ने .........
बिटिया तू तो ज्योत है घर की
तू नहीं
तो
कुछ भी नहीं
पर
अड़ी रही
बिटिया आजीवन
खड़ी रही
प्रश्न की मशाल थामे |


रेजा सदा आजाद रही है


20 October 2014
11:59
-इंदु बाला सिंह

काम का अवकाश
होते ही
मजदूरों का
अपना अपना
छोटा छोटा
समूह बन जाता है
हर समूह में कोई न कोई होता है
धनी
जो बांटता है
अपने घर की पकायी सब्जी
वे
पानी भात सब्जी संग खा के
लेट जाते हैं
सड़क के किनारे
छायादार वृक्षों के नीचे
यही
वह फुर्सत का समय रहता है 
जब
ठेकेदार नहीं रहता है
पर
आ जाता है
मनिहारी वाला
रंग बिरंगे क्लिप , सुनहले हाथ , कान के गहनों 
से जगमग करता चलती फिरती
पहियोंवाली दूकान लिये
जिसे घेर लेती हैं
जरीवाली साड़ी , सलवार-जींस , शर्ट-स्कर्ट-लेगिंग्स पहनी
रेजागण ............
पैसे की कोई बात नहीं
बिकता है माल उधारी में ........
मिलेगा मोल
आज नहीं तो शनिवार को
यह जानता है
मनिहारीवाला भी
रेजागण लड़ती नहीं हैं
महिला आजादी की लड़ाई
वे जीती हैं
आज में
वे आजाद थीं
और
रहेंगी आजाद
जब तक समय मजबूत रखेगा
उनके हाथ पांव
कल किसने देखा है |

सफल इन्सान में छुपा है बचपन


20 October 2014
07:28

-इन्दु बाला सिंह

नींद आती है
तो
हम झगड़ने लगते  हैं
अपने स्वप्न में
अपनों से
आफिस के ' सर ' से 
बड़े से बड़े प्रश्न का हल मिलता है
हमें
अपने स्वप्न  में
तभी तो
हर बच्चा
होता है
एक स्वप्नद्रष्टा
और
हर सफल इंसान में
एक
मासूम सा बच्चा खिलखिलाता है |


दौड़ना सीखें


20 October 2014
07:00

-इंदु बाला सिंह

माना
कि
तुम
अपनी कमाई का खाते हो
पर
मोटापे से फूले
गैंडे सरीखे दिखते
चल पाने की क्षमता बचाये रखने के लिये
भोर भोर
दौड़ते तुम 
क्या बात है
तुम्हीं
तो
प्रतिनिधि हो
मेरे देश के  |


रविवार, 19 अक्टूबर 2014

अनुभूतियों का इतिहास


18 October 2014
22:27
-इंदु बाला सिंह

हुदहुद आया
समझाया
क्यूं रखा है
तुमने
यादों को
अपने खतों को
मृत सम्बन्धों को
जान बचा कर भागते हैं सब
मुसीबत में
तुमने तो
इतने सारे
मृत
प्रेमिल क्षणों को
सम्बन्धों को
आफिस की
अपनी पोस्टिंग को
इन्टरव्यू को
एक्स्पीरेयेंस लेटर्स को
बचा के रखा है
ढो रही हो
अनुभूतियों के गट्ठर को
समझ आयी
मुझे
हुदहुद के माध्यम से
वह बात
जो
सुनामी न समझा सकी
पढ़ती गयी
खतों को
जीती गयी
पुराने पलों को
पर
मुश्किल था पढ़ना
विगत
चालीस साल का जीवंत इतिहास
समयाभाव ने
याद दिला दिया
मुझे
जीवन की निस्सारता का अहसास
कभी सोंचा था
मैंने
लिखूंगी
इन खतों के माध्यम से
अपनी
आत्मकथा
और
जियूंगी
पुराने पलों को
पर
अब स्थानाभाव के कारण
एक कार्टन
अपने पुराने पत्र , डायरी की पन्ने
विसर्जित कर दिया
मैंने
अपने घर में ही
पानी भरी बाल्टी में ........
आज
मैं अकेली हूं
यादों के बोझ से
मुक्त हूं
रेशमी व खुरदुरे अहसास से
मुक्त हूं
समय ने
श्रमिक बना दिया है
मुझे
जय हो !
हुदहुद तेरी |