22
December 2014
13:56
-इंदु बाला
सिंह
दो दिन पहले
मिली थी
एक
नवजात कन्या रेल की बोगी में
एक झोले के
अंदर .......
कपड़े में
लिपटी हुयी जाड़े से बचने के लिये शायद
आज फिर मिली
उसी स्थिति में
एक और कन्या
......
पढ़ अखबार में
खबर कितने चेहरे घूम गये आँखों के आगे ..........
शायद बच्ची के
माँ गरीब थी
या
शायद उसे
कन्यादान कर
पुण्य कमाने
की इच्छा न थी ....
जो भी था मन
में उस माँ के
पर
अपनी
कन्या को भाग्य भरोसे
छोड़
अपनी जैसी ही
बनने की
वसीयत नहीं
लिख दी थी क्या वह ........
सोंच में पड़
गयी मैं |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें