गुरुवार, 11 दिसंबर 2014

रौंदते हैं भाग्य


28 November 2014
07:32
-इंदु बाला सिंह

भाग्य के गांव बसनेवालो !
पौ फटते ही
बज जाता है बिगुल
क्षत्रिय जन्मते हैं रौंदने भाग्य
और
रौंदते हैं सीना दुश्मन का
हर भोर
जनमता है क्षत्रिय
हर रात मरता है वह
लिंगभेद
न जानूं मैं
सुन प्यारे
जीवन है युद्ध
बस इतना जान ले
कि
जो लड़ा नहीं
वह जिया नहीं |

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