सोमवार, 8 दिसंबर 2014

कृषक आंखें तरसें


08 December 2014
19:50
-इंदु बाला सिंह

हवा हूं
झाड़ियों में अटकूं
वन में भटकूं
रेगिस्तान में दौडूँ
मैं तो हूं धरती की प्यारी बिटिया
ओ रे बादल !
चल
कि
कृषक आंखे तरसे
तेरे लिये
तुझे बुझानी है धरती प्यास |

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