17
December 2014
22:31
-इंदु बाला
सिंह
विदेश में
बढ़े बच्चे
कितने
आत्मविश्वासी होते
मौसम को न
पहचानते
अनुभव को
नकारते
हर पल अपने
में मस्त जीते
उनके लिये
जेब का
रुपय्या सर्वोपरि .........
क्या
सचमुच अनुभव मिट्टी है ........
आज
सोंच में पड़ गयी मैं .........
ये कैसा
परिवर्त्तन है
वसुधैव
कुटुम्बकम के नाम पर |
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