19 December 2014
13:30
-इंदु बाला सिंह
कितना सहज होता जीना
औरतों का
भाग्य पर भरोसा कर
हंस लेतीं वें ...
रो लेतीं वें ........
अपनी किस्मत को दोष दे दे ........
बसा देतीं वे किसी का घर .........
नाचती गातीं वें
उस बसाए घर में ........
सैकड़ों साल में
पैदा होती है
कोई एक लक्ष्मीबाई
जो लड़ती है अपने नसीब से .............
बांध अपनी सन्तान पीठ पे .........
लेकिन
वो भी नाम पा जाती देवी के अवतार का ......
ओ रे समय !
जरा तू ही बता
ऐसा क्यों है
कि
बढ़ती हैं लडकियां आरक्षण के सहारे .........
पलती है वें पिता पुत्र , भ्राता के सरंक्षण में ..........
और
वे खुश रहती हैं .......
चहकती हैं .........
भाग्य के संग |
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