25 August
2014
19:55
-इंदु बाला
सिंह
आज अचम्भे
में डूब जाता है मन
यह सोंच कर
कि
वह कैसा
निश्चिन्त बचपन था
जब
बड़े ठाट से विद्यालय में
लिखे थे
निबन्ध हम
' गरीबी वरदान
है '
और
इतने सारे
कारण गिनाये थे अपने निबन्ध में
कि
चमत्कृत
शिक्षक से
सबसे ज्यादा
नम्बर मिला था निबन्ध में हमें
पर
आज वही हम हैं
और
पढ़ रहे हैं
जिन्दगी की पाठशाला में
कि
गरीबी अभिशाप
है |
आज
पूछता हैं मन
परमशक्ति से
कि
किसी को तुम
कैसे गरीब बना देते हो
और
गर गरीब बनाते
भी हो तो
उसके घर में
बिटिया क्यों जन्माते हो |
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