शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

अमर पोई


30 July 2014
07:12
-इंदु बाला सिंह

कौन कहता है
हंसते हुये
जाते हैं हम जग से
उस दिन
जोर की आंधी थी आयी
सांस रुकी रुकी सी थी हमारी
और
गिर गये हम
अपनों से बिछड़ गये  हम
पर
जब हमारे पत्ते से
निकली हमारी असंख्य जड़ें
लगा हमें
हम तो थे
अमर पोई |

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