शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

समझदार मन


01 August 2014
21:28
-इंदु बाला सिंह

मन को उड़ते देख
उसका पर काटे बुद्धि
यह स्वार्थ है
या समझौता बुद्धि का
समझ न पाने पर
व्याकुल मन
बौखला कर फुदके
इस कमरे से उस कमरे
छत और बालकनी पे
ज्यों ज्यों रात बीते
त्यों  त्यों शीतल हो तन
और
सो जाये मन
गजब का समझदार है मन
कभी न उड़ बैठे पेड़ पे
उसने देखा है
हर रात को आती है
एक बिल्ली
जो
पकड़ के ले जाती है एक पक्षी |



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