सोमवार, 25 अगस्त 2014

हम तो पुरानी कालीन को बदल देते हैं


25 August 2014
20:18
-इंदु बाला सिंह

रोमांचित हो जाता है तन
याद कर के वह रिश्ता
और बचपन का वह  पल
जब
दूर गाँव से
वे शहर आये थे
अपने भाई के परिवार को ट्रेन पर चढाने
पर
ज्यादा पैसा कूली के मांगने पर
अपने कंधे के गमछे को गोल कर
अपने सर पे रख
कहा था उन्होंने
मेरे पिता से
पकड़ और चढ़ा अटैची मेरे सर पे
और
हमें चढ़ा दिया था 
धड़धड़ाती आयी मेल ट्रेन में  |
उनका  मन   
अपने छोटे भाई को गांव से
शहर के लिये ट्रेन पर चढ़ाते समय
कितना भींगा होगा
और
लौट कर वे
बिजलीहीन गांव में क्या महसूसे होंगे
यह अलग बात है
पर
रिश्ते का वह प्यार
शहर में
आज भूल चुके हम
आखिर 
कमजोर रिश्तों को क्यों ढोयें हम
टाट में पैबंद लगाने के हम शौकीन नहीं
हम तो हर साल पुरानी कालीन को
कालीनवाले को दे देते हैं
उससे नयी कालीन 
खरीद लेते हैं |

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