शुक्रवार, 1 अगस्त 2014

भींजे हम


31 July 2014
06:54
-इंदु बाला सिंह

भोर भोर
स्कूटी पर उड़ता तन
हौले से छूती हवा
तरंगित गर देती है मन
जेब के
अपने कमाये रूपये
भले घर में लुट जाते हैं
पर
टिका रह जाता है आत्मविश्वास
स्वाभिमान
आँखों में
और
रात को कमरे में
साईकिल के पैडल मारते हुये
पसीने से नहाता है तन
तब
एक संतुष्टि से
भींज उठता है मन ........
जन्मदाता के प्रति
कृतज्ञता से भरा मन
असीम शक्ति को भी धन्यवाद दे बैठता है |

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