18 August
2014
22:00
-इंदु बाला
सिंह
ओफ
!
कितने जोश में
तुम
गा रहे हो
फ़िल्मी धुन में भजन
रात दस बजे के
बाद !
चुप हैं मकान
और
सड़क
और
मुझे याद आ
रहे हैं
वे पंडित जी
जो इस
जन्माष्टमी में
मौजूद नहीं
मेरे पड़ोसी ने
बताया
वे गांव गये
थे
वहीं
गुजर गये
बूढ़े थे न
........
बुलावा आया था
........
पंडितों की
अर्थी न दिखे कभी
ठीक चिड़ियों
की तरह
वे जहां से
आते हैं शहरों में कमाने खाने
वहीं लौट जाते
हैं
आख़िरी सांस
अपनी मिट्टी में अपनों के बीच लेने के लिये |
तुम्हारी ये
जोश भरी भजन गाती आवाज
मुझे इश्वर की
नही याद दिला रही है
क्यों कि
इश्वर का रूप
तो मेरे हृदय में ही विराजमान है |
तुम्हारा भी
बुलावा आयेगा
तुम भी इसी
तरह घरों में
बुलावे पर भजन
गाते
बिना मेडिकल
इन्श्योरेंस के कमाते खाते
गुजर जाओगे एक
दिन
पर
हम रहेंगे
तुम सरीखों को
अर्थ दान दे कर
क्यूकि
अपना पूण्य
बैंक के लाकर में
सुरक्षित रखा
है |
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