06 August
2014
06:57
भोर भोर
मुझे अकेला
पा के
सड़क पकड़ ली
मुझे
और
बतियाने लगी
मुझसे
न जाने क्या
दिखा उसे मुझमें
बह गयी गयी
मेरे सामने
अनजाने में
ही
उसके मन की
व्यथा
और
मैं उसे
सांत्वना न दे
अपनी
मजबूरी गिनाने लगा |
हैरान हुआ मैं
जब लौटा एक
वर्ष बाद
उस सड़क को न
पाया
पास के
गांववालों से
जब जानना चाहा
उसके बारे में
तो
वे बोल पड़े
......
हां जी ...सड़क
तो थी यहीं ..पर पिछली वर्षा में वह तालाब बन गयी ....
और
मैं अपराधबोध
से डूब गया
काश मैंने
सुनी होती उसी
समय सड़क की बात
और
एक छोटा सा
टेंडर दे
बचा लिया होता
सड़क को
.......
पर
अब मैं
अनसुनी न करता
हूं
किसी भी सड़क
की बात .......
सड़क और मेरी
कार है मेरे प्यारे दोस्त
हम सदा देते
हैं एक दूसरे का साथ |
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