14 August
2014
10:05
-इंदु बाला
सिंह
निस्तब्धता
में
जब
मन
के तार जब
बजने लगते हैं
वह
गा उठता है
अनजाने
में |
हवा में
लहराती उसकी आवाज
एक पल को
ठिठका देती है
समय के पांव
और
प्रकृति भी
हो जाती है
निस्तब्ध
|
मन
चेतना के लौटते ही
चौंक उठता है
अपनी साथिन
बुद्धि को गुमसुम बैठे देख
वह
चुप हो जाता
है |
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