शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

सुन समय


14 August 2014
07:30
-इंदु बाला सिंह

बरसात में
जीवन संध्या में
बालकनी बड़ी सुहानी लगती है
और
भींगी फुहारें
पहुंचा देती हैं
मन को
उन गलियों में
जहां जहां से वह गुजरा  था
निराश पलों में
आशा के घूंट पिला के
पाला था उसे
मैंने |
आज देखूं
मैं
अर्जुन सरीखी
अपना भूत अपने वक्षस्थल में |
ओ समय !
तू ही तो रहा
मित्र मेरा
सदा रहा साथ मेरे तू
रात हो या दिन
मैं न रहूं तो
खुश रखना तू
मेरे लगाये पौधों को |






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