बुधवार, 6 अगस्त 2014

मन ही संगी


05 August 2014
22:17
-इंदु बाला सिंह

मन ही संगी
मन ही सहारा
मन सा मित्र न कोय
मन सा निश्छल
मन सा प्यारा साथी न मिले जग में
मन को न ठगना प्यारे
क्योंकि
मन की हार  तेरी हार
मन को न मरने देना जीवन में प्यारे
बांध ले
रुमाल में
ये मेरी लाख टके की बात |

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें