14 August
2014
06:59
-इंदु बाला
सिंह
ओ
सहोदर !
याद आते वे
बचपन के
झगड़े
जो मीठे लगते
थे
कभी
पर अब न लगें
वे मीठे
क्यूंकि तुम अब भी झगड़ते हो
और
बीज गिर रहे
हैं हमारे झगड़ों के
हमारे बच्चों
के मन में |
अब
बेहतर है
हम न मिलें
अपने बच्चों
की भलाई के लिये |
आशा करूं मैं
समय से
जो करेगा
उस बीज को
निष्क्रिय
जो आ गिरा था
उस आंधी में
उनके
बाल मन में
और
वे
आजीवन बंधुत्व
रखें
अपने सहोदर से
मांगना न
भूलें
परम शक्ति से
दुआ
भले ही वे
सागर पार
रहें |
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