शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

खट्टे अपने


14 August 2014
06:59
-इंदु बाला सिंह

ओ सहोदर !
याद आते वे
बचपन के
झगड़े
जो मीठे लगते थे
कभी
पर अब न लगें
वे मीठे
क्यूंकि तुम अब भी झगड़ते हो
और
बीज गिर रहे हैं हमारे झगड़ों के
हमारे बच्चों के मन में |
अब
बेहतर है
हम न मिलें
अपने बच्चों की भलाई के लिये |
आशा करूं मैं
समय से
जो करेगा 
उस बीज को निष्क्रिय
जो आ गिरा था
उस आंधी में
उनके
बाल मन में
और
वे
आजीवन बंधुत्व रखें
अपने सहोदर से
मांगना न भूलें
परम शक्ति से दुआ
भले ही वे
सागर पार रहें  |

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