सोमवार, 26 दिसंबर 2016

झूलता अस्तित्व


- इंदु बाला सिंह


ऐडमिशन न हो पाया था उसके बेटे का बड़े स्कूल में
और वह निरुद्देश्य सी स्कूल की सड़क पर घूमती रही थी देर तक उस दिन ......
लग रहा था दुनिया ही खत्म हो गयी हो
सामने एक खालीपन सा था .....
आज भारत के उच्च व प्रतिष्टित कालेज से पढ़ कर ऊँचे पद पर बैठा है उसका बेटा ...
वह उन दो पलों के बीच झूल रही है ......
गजब के पल होते हैं ......
आदमी बवह स झूलता रहता है समय के झू

प्रेम सोया





Tuesday, December 27, 2016
4:10 AM


यूँ कहते हैं
दुश्मन हो जाती है जब दुनिया
और ......सहोदर हो जाते हैं पराये
तब समझ लेना ... तुम सही राह पर हो
पर ...... तब कितना कठिन होता है  चलना 
घने अंधकार में ......दूर आकाश की ओर तकना
सूर्योदय की अपेक्षा करना ....
अपने आर्थिक अभाव में ......अपनों के बदले चेहरे देखना ......
याद आती हैं मनभावन पुस्तकें ..... उसकी नसीहतें .....
झूठ मत बोलना
दुष्टों का अंत बुरा होता है
ठंड में ठिठुरती खुशी बोल उठती है ......पर वे खुशी खुशी जी तो लेते हैं
मोह न पायें मुझे  .... मन्दिर , मस्जिद , मधुशाला
ये किसी घुट्टी पी ली मैंने
जी जलाया समय ने
प्रेम रूठा ..... सो गया गहरी नींद में ......जगाने का गुर न जानूं  |







सोमवार, 19 दिसंबर 2016

दिसम्बर की एक सुबह


Tuesday, December 20, 2016
6:53 AM


कुत्ते गोल हुये पड़े हैं बालू पर
लेकिन आदमी बंद है अपने दड़बे में
शहर कोहरे में डूबा है
सड़क की एक अट्टालिका दूसरी को नहीं देख पा रही है
सड़क पर
गर्म कपड़ो में चेन से बंधे कुत्ते निपट रहे हैं ....
रईस गर्म कपड़े में तेज चल रहे हैं  ..... सेहत बना रहे है 
दिसम्बर मुस्कुरा रहा है |

शनिवार, 10 दिसंबर 2016

मनचाहा सांचे में ढल तू


Saturday, December 10, 2016
9:32 PM

- इंदु  बाला सिंह 


क्रोध बचा कर रखना
पालना
और समय पर पलीता सुलगना 
जिन्दगी एक राकेट है ...... निकल जायेगी वह भी दलदल से एक दिन
छू लेगी तू भी अपना आसमान
ओ री ! नसीब की मारी ....
आकाश में तू ही लिखेगी अपना नाम .....
ढाल ले न तू अपनी मिट्टी  ..... अपने मनचाहे सांचे में |

गुरुवार, 17 नवंबर 2016

कठिन होता है जीना


Thursday, November 17, 2016
7:36 PM

-इंदु बाला सिंह

बड़ा कठिन होता है गम पीना 
अभावों की अदृश्य लाठी संग अकेले चलना
हर निकटस्थ का मान रखना
और
आजीवन युवा रह ...... बाइज्जत जी लेना |

रविवार, 13 नवंबर 2016

नाखुशी की कीमत


- इंदु बाला सिंह


नाखुशी में
मैंने ....जब कर डाले ......बड़े बड़े काम
तब समझ में आयी मुझे ..... कीमत नाखुशी की
वर्ना
खुशी ने तो मुझे
नकारा ही बना डाला था

गुरुवार, 10 नवंबर 2016

पांच सौ और एक हजार के नोट


10 November 2016
15:53


- इंदु बाला सिंह


रात में खबर क्या आयी इंटरनेट में
कि नींद उड़ गयी बहुतों की .....
रात बारह बजे से पांच सौ और एक हजार के नोट बाजार में नहीं चलेंगे |
मैंने लम्बी सांस ली
हमारे घर में मात्र तीन सौ रूपये थे .....
सोंच में पड़ी ... आखिर कामवालियों , मजदूरों का क्या होगा !
घर में ही रखते हैं वे अपने रूपये ......
गृहणियों का क्या होगा .... वे अपने मर्दों से छुपा के रखतीं हैं रूपये
और भी तो लोग हैं ...फल के ठेलेवाले , सब्जी के ठेलेवाले , गुपचुप बेचनेवाले व इन सरीखे अनेकों फेरीवाले .....
आखिर सो गयी मैं
पर शहर खरीद रहा था सोना ....
सुबह पढ़ी अखबार में
क्या डकैती नहीं पड़ेगी ... सोना रखनेवालों के घर में
रंगा पड़ा था अखबार
पांच सौ रूपये धारी की दुखभरी कहानियों से .......
कहतें हैं काला धन निकालने के लिये हुआ है बंद नोट
दो दिन बाद नया नोट मिलेगा .......
पूरे देश को हिला दिया इस नसुड्धे पांच सौ और एक हजार के नोट ने |

शनिवार, 5 नवंबर 2016

पैसा शराब से ज्यादा जहरीला


Saturday, November 05, 2016
10:16 PM
  
- इंदु बाला सिंह 

सुन मेरी बात
ओ पैसा !
तेरा अभाव सरल बुद्धिमान को मुर्ख बनाता
देख सगे  का हश्र चतुर आदमी तुझे पाने को  सौ हथकंडे अपनाता |
ओ पैसा !
तू तो शराब से ज्यादा जहरीला .... नशीला
जेब में पहुंचते ही .... तू तो सारे रिश्ते भुलाता
तभी तो  .... अम्मा तुझे बैंक में रख निश्चिन्त सोती |
मै बावरी
सदा मौन खड़ी
देखती रहती

तेरी ....बदलती चाल |

गुरुवार, 15 सितंबर 2016

उठाई है मैंने कलम



- इंदु बाला सिंह


काट मेरे मन के कोमलतम तार
तू चाहे मैं उठा लूं आग
पर
शांतिप्रिय मन मेरा
होने न देगा पूरी तेरी आकांक्षा ........
कि
उठाई  है मैंने कलम
और
उंडेल दी है उसमें पूरे मन की श्याही । 

तेरी ' मधुशाला '


Thursday, 15 September 2016
1:25 PM
इन्दु बाला सिंह


ओ ' मधुशाला ' के कवि !
मेरी दुश्मन है मधूकलश और  मधुशाला ......
तेरी आत्मकथा ने ………मोह लिया मुझे

पर बाँध न सकी    …… मधुशाला ……  निज  सम्मोहन में   ……   न जाने क्यूँ …….

कितने घर उजाड़े  ……   रंग रंगीली  मधुशाला ने  
आकर्षित करती हारे मन को  …… हर मधुशाला   
ख़ुद चमकती  …..वह  …..मुस्काती  लूट  ……  नित   नए रईशों का बैंक बैलेंस
तूने तो लिखी  …..   'मधुशाला '  …..   बिन पिये
और
मुझे भी  भाने लगी

आज  …….बिन पिये   …….तेरी ' मधुशाला '  

बुधवार, 14 सितंबर 2016

जो झेल गया वो दमक गया


Thursday, 15 September 2016
11:40 AM

-इन्दु बाला सिंह

प्रलय की रात हो
या
मूसलाधार बरसात हो
जो झेल गया   नकारात्मक प्रचंड आग
वह
दमक गया कुंदन सा

आनेवाली पौध के लिए   उदाहरण बन गया

मिले उपहार



Thursday, 15 September 2016
7:06 AM

- इन्दु बाला सिंह

धन कमाना कब सीखोगी तुम
अपना ……मूल्य ………. कब पहचानोगी तुम
कब तक 'उपहारों ' के सहारे जियोगी तुम
ओ री लड़की !
जरा …….अपने अर्जित धन से उपहार भी देना सीखो न ।

झूठ का सम्मोहन


Thursday, 15 September 2016
11:13 AM
-इन्दु बाला सिंह


झूठ के पाँव लम्बे होते हैं
वह लम्बे  लम्बे डग ले कर अपने पास के और दूरस्थ इंसान को लपेट लेता है
झूठ का सम्मोहन इतना निराला कि जब तक हम चेतें वह नया जाल बिछा लेता है
इसकी  की गिरफ्त से निकलना उतना ही दुरूह है जितना ज़मीन पर रेंगते सांपों से बच के निकलना

सच अपनी  चाबुक पकड़े न्यायालय में कुत्ते की नींद सोता  है  …… अपनी पुकार का इंतजार करता रहता है ।

शनिवार, 10 सितंबर 2016

तलाशूं मैं



- इंदु बाला सिंह

सड़क के इस मोड़ पर पहुंच
न  जाने क्यों लगने लगा आज ..... ईश्वर  कुहासा है   ... भ्रम है ..... नशा है  .... राजनीति का जरिया है   ...
ऐसा भला क्यों ?
माना यह एक अनुत्तरित  प्रश्न है
पर
आज मुझे तलाश है ....... इसके उत्तर की । 

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

औरत ! देख जरा दर्पण



- इंदु बाला सिंह सिंह

इतिहास देखा
और देखा मैंने वर्तमान .......
औरत ! तुम माँ हो   ... मात्र सेविका हो    ...... अपनी सन्तति   ...... पुत्र या पुत्री  की   .... मित्र नहीं   .....
तुम्हारा  सेविका रूप ही समाज में मान्य है   ......
ओ री औरत !  देख जरा दर्पण ........
क्या तुममें अपना अस्तित्व तलाश पाने की चाह है ?
अगर हाँ
तो
बनो योद्धा ।

लड़की तुम योद्धा हो



- इंदु बाला सिंह


लड़की !
तुम प्रिया  नहीं , योद्धा हो
तुम्हें लड़ना है समाज की स्त्री से   .... पुरुषों से ......
लड़की !
तुम सामान हो   ....... तुम्हें दान कर पिता पूण्य कमाता है   ......
तुम कामगर हो ....  मजबूरी की प्रतीक हो ......
लड़की !
तुम पूजनीय हो   ...... इंसान नहीं समझी जाओगी
तुम्हारी गलतियां क्षम्य नहीं   .....
लड़की !
तुम योद्धा हो  ..... तुम्हें लड़ना है   ........ आजीवन लड़ना है
अपने हक के  लिये लड़ना है ....... अपने अस्तित्व के लिये लड़ना है । 

सोमवार, 5 सितंबर 2016

हैसियत में रहना है बेहतर



-इंदु बाला सिंह


बड़ों की  ......  चप्पलें , कपड़े पहन के
बड़ा बनने के सपने देखने बन्द  दिये  हैं  अब    ........ मैंने ........
भाने  लगे हैं अब अपने खरीदे  रंग छुटे कपड़े
आज हैसियत में रहना मेरा मनोबल मजबूत करने लगा है । 

तुम पे न चलाऊँ मैं क़लम



- इन्दु बाला सिंह

कभी न मन किया लिखने का तुम पर
तुम ...... निहंग नहीं हो ....... अभागे नहीं हो मुझ सरीखे इंसान हो ...... मुझे नहीं है सुख पाना ...... लिख के तुम्हारी अज्ञानता पे तुम्हारी टूटी झोपड़ी पे .............. घर तो महल में भी बसता है और मिट्टी के घर में भी ।

रविवार, 4 सितंबर 2016

तुम ...... मेरे ईश्वर हो



तुम्हारी नसीहतें 
अंकी हैं मन की दीवारों पर
ओ मेरे शिक्षक !
जीवन के अँधियारे पलों में .........
रोशनी देते हो तुम मुझे
तुम .....जीवित हो मुझमें
तुम ...... मेरे ईश्वर हो .....पथप्रदर्शक हो ।

सोमवार, 29 अगस्त 2016

महाकाल की भृकुटि




- इंदु बाला सिंह



ओ उड़ीसा के दाना मांझी !
तुम्हें देख
न जाने क्यों
मुझे
याद आये
प्रिया सती  के शव को कन्धे पे लादे शिव    .........
हमारी व्यवस्था को देख
महाकाल की भृकुटि तो नहीं  तनी
कहीं वे तांडव तो नहीं कर  रहे  आज  .... मन में एक प्रश्न अंगड़ाई ले रहा है आज । 

रविवार, 28 अगस्त 2016

घर और इंसान



- इंदु बाला सिंह

होता है
जी होता है
हर घर में ऐसा होता है
एक लड़की भाग के घर बसायी होती है
एक पुरुष ने अपने भाई का हक मारा होता है
एक भाई अपनी बहन का  पैतृक हक निगल के बैठा होता है
एक जेठ  भयो के ट्रंक का ताला तोड़ तृप्त  हुआ  रहता   है
एक मर्द अपने बेटे के सुख के लिए ब्याहता  ग़रीब बेटी के सुख को  भूल  जाता  है
एक मर्द अपने सुखद भविष्य के लिए अपने माँ बाप के प्रति फ़र्ज़ भूल जाता है
एक लड़की भ्रूण हत्या कर अपना सुख ख़रीद लेती है
हर घर का  मज़बूत सदस्य अपने सुख के लिये नित नये हथकंडे अपनाता है
फिर भी
घर तो घर होता है   ........
इंसान है तो गलतियां होती हैं   ...... हर सुबह हम गलतियों को धो कर बहाते हैं
कीचड़ में ही तो आशा का कमल खिलता है   .......
होता है
भाई होता है
हर घर में ऐसा होता है । 

सोमवार, 22 अगस्त 2016

मैं खुश हूँ आज

- इंदु बाला सिंह

लो ! मैं उड़ चला
छू लिया .... मैंने बादलों को
मेरे नीचे  खड़े है आवाक्   ..... मेरे पड़ोसी .... मेरे रक्त सम्बन्धी
लो ! मैंने आज भरी मन चाही उड़ान   ...
मैं   खुश हूँ आज ।

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बुधवार, 17 अगस्त 2016

अहंकारी



-इंदु बाला सिंह


चढ़ गई प्लेन पे
बच्चा पैदा करने
फायदा उठाने
कहा तुमने   ...... और दिख गई तुम्हारी  जात
तुम क्या जानो दर्द प्रसव का ओ अहंकारी  । 

अमीर हो गये भाई



- इंदु बाला सिंह



चमकती आँखों से से बाँध रहे बच्चे धागे
रंग बिरंगी राखियां
खुश हैं वे
पर
स्पंदनहीन हैं    ...... वे उम्रदार  अकेली  बहनें
जो भूल चुकी हैं ..... सौंदर्य राखी का
उनकी गरीबी ने मिटा  दिया है..... उनके मन से    .....  मिठास और अहसास राखी का
अमीर हो गये  हैं भाई उनके । 

शनिवार, 13 अगस्त 2016

रक्तसम्बन्धी



- इंदु बाला सिंह

कायर ढूंढें
ताकत  सम्बन्ध में ...
आज मेरा मित्र  ... मेरा वक्त है
न चाहूं मैं रक्तसम्बन्धी । 

गुरुवार, 11 अगस्त 2016

सच को तलाशूं मैं



- इंदु बाला सिंह

सच छुपा बैठा था मुझमें
और बावरा मैं तलाश रहा था उसे
सड़कों पे । 

मंगलवार, 2 अगस्त 2016

जिंदगी का दूसरा नाम समझौता भी है



- इंदु बाला सिंह

दिल का  हाल घायल दिल ही  पहचाने
वैसे
वह तो .....  एक सफल इंसान है   .... अकेला है ..... अपनों की ईर्ष्या का पात्र है  
क्योंकि
पढ़ लेता है वह अपने निकटस्थ का मनोभाव   ....
न जाने वह युवा कब समझेगा
कि
जिंदगी का दूसरा नाम समझौता भी है ।

रविवार, 31 जुलाई 2016

सावन में शिव



-इंदु बाल सिंह

शिव घबरा कर चले  गये हैं शहर  की किसी सुनसान जगह   की ओर ......
एक विशाल पेड़ की छांव में  बैठें हैं वे
और लोग नहलाये जा रहे हैं बेजान पत्थर । 

काम करो



- इंदु बाला सिंह

कचरा नहीं  उठायेंगे
घास नहीं निकालेंगे
घरों में बर्तन नहीं मांजेगें   .......
मशीनें आ गयीं हैं
हम अपना काम खुद कर लेंगे
तुम हमारी चिंता मत करो
पर हमेशा तुम अपनी सोंचो   ... विचारो .........
कहीं तुम  इस्तेमाल तो नहीं किये जा रहे हो ?
कल अपना पेट  भरने का उपाय है तुम्हारे पास ?
आखिर क्यों जा रहे तुम मजदूरी करने दूसरे देश ?
ऐसा भी क्या बहकना
दूसरों की बातों में आना
काम करो    ...... बस  काम करो ।

रविवार, 24 जुलाई 2016

वे तो बदलती रहतीं हैं



- इंदु बाला  सिंह



रोना मना है
डरना मना है
ओ युवा !
चल उठ .... याद रख
कि
जिंदगी एक राह है
और
तुझे  चलते जाना है
ऋतुओं   का क्या   ....  वे तो बदलती  रहतीं   हैं ।

शुक्रवार, 22 जुलाई 2016

बेटी तो बस बेटी ही है



- इंदु बाला सिंह


बेटी   ........ कहलाती है बेटा
सम्हालती है ....... जब वह अपने माता  पिता को   ..... आर्थिक रूप में
और भाई के पास ढेर सारे बहाने हैं   .......  देखभाल न कर  पाने के अपने जन्मदाता का  ।
आखिर क्यों खुश होती है बेटी   ... खुद को बेटा कहलाए जाने पर  .........
क्या  बेटे सा मान पानेवाली   बेटी ....... पुरुष सत्ता , निरंकुशता  की परिचायक नहीं    ......
बेटी तो    .... बस   ...... आजीवन बेटी ही रहती है । 

शहर में गाँव


मेरे शहर में बहुत से गाँव बसते हैं 
कहीं दो कुत्तों के झगड़ने की आवाज सुन
अपनी अपनी सड़कों से बिजली की तरह निकल ........ भागते हैं कुत्ते .... घटना स्थल की ओर
झगड़ा खत्म होते ही ..... खामोश से लौटते हैं वे .... अपनी अपनी सड़कों पे ....... अपने अपने घरों में ।

बड़ा निकम्मा है मन



- इंदु बाला सिंह


कुछ ऐसे  चुभो जाते हैं कांटा  ....  अपने
जो निकाले नहीं निकलते
मन भी तो  निकम्मा है  ..... कुछ करता धरता  नहीं
जितना भी समझाओ ....   वह नेकी को दरिया में डालता नहीं । 

बुधवार, 20 जुलाई 2016

सड़कों पे कैमरा कब लगेगा ?



-इंदु बाला सिंह



म्युनिसिपैलिटी ने कल पेड़ लगाया सड़कों पे
उन्हें बड़ी बड़ी जाली से ढका
और जाम किया   कांक्रीट से जाली को  मिट्टी में  ......... आवारा पशुओं से बचाव  के लिये   .......
दुसरे  दिन जाली गिरी पड़ी थी   .... पेड़ गायब था
म्युनिसिपैलिटी ने कचरा का डब्बा रखा  ...फेंकने के कचड़ा
हर रोज जमीन पर बिखेर देता है कचरा एक हट्टा कट्टा आदमी
न जाने क्या ढूंढ़ता है वह   ....
इन्तजार है अब लगने का सड़कों पे कैमरे
अपने बच्चों को ईमानदारी और सच्चाई का पाठ पढ़ाने के लिये
खुद को चौकन्ना रखना पड़ता है
गलतियों से बचना पड़ता है
आखिर स्कूल के भरोसे कितना रहेंगे बच्चे ।






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मंगलवार, 19 जुलाई 2016

छुपती क्यों तुम



- इंदु बाला सिंह


ओ री कविता !
क्यों जन्म लेती हो तुम  सुबह के मॉर्निंग वाक के दौरान
और
घर पहुंच  ......... टिफिन तैयार कर टेबल के सामने बैठते ही
छुप जाती हो न जाने तुम कहां   । 

गिद्ध दृष्टि

 Indu Bala Singh


सड़कें
सज रहीं हैं
नये  लिबास धारण कर  रहीं हैं
छायादार हो रहीं हैं
पैदल और दुपहियावालों को सुकून दे रहीं हैं
बदरंग हो रहे हैं बगल के मकान ...... पर साँसे चल रहीं हैं इन घरों में   .......
चमचमाते मकानों की गिद्ध दृष्टि लगी है   ......  घरों पे ।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2016

वह भूखा है



- इंदु बाला सिंह

प्रेम आसमानी  बादल है भूखे के लिये
भूख की बिलबिलाहट में उड़ जाते हैं कहीं दूर ये बादल और बरस जाते हैं तृप्त घरों में   .....
भूखे को तो बस  ....  काम चाहिये
स्वाभिमान  से भरी  रोटी चाहिये
भूखे का  दिवास्वप्न भी उसकी नौकरी है    ........
वह जानता है कि नौकरी ही   उसकी  पहचान है। 

अपना मकान


Indu Bala Singh




उनके अपने मकान ने 
बड़ा रुलाया उन्हें ...

वे भयभीत थे .... बुढ़ापे में कोई कब्जा न कर ले मकान ..... 
छूटे रिश्ते
बेटे से सहायता की आस लिये मिट गये वे
और
बेटे ...... एक दूसरे पे लगाते रहे ..... तोहमत.......
खाली हाथ आये थे वे ..... चले गये खाली हाथ ........
मकान बिक गया कौड़ियों के मोल
बेटे समझदार थे ....... 

उन्होंने अपने अपने हिस्से का पैसा रख दिया बैंक में ।

सोमवार, 11 जुलाई 2016

लड़की की जान

Indu Bala Singh


वह गिर रही थी
अपने देख रहे थे   ..... उसे
इंतजार कर  रहे थे ..... उसकी सांस के रुकने का
उसके   ..... कमरे के खाली होने का   ........
लड़की की जान बड़ी बेहया होती है   ....... शरीर त्याग नहीं करती है वह आसानी से । 

मंगलवार, 5 जुलाई 2016

वह भूखी है



- इंदु बाला  सिंह

खा  के धोखे
सो  गई अंतरात्मा    .......  युवती  की  .....
अब   .... दिग्भ्रमित है वह .....
मिटाये न मिट  रही है उसकी भूख  .....
उसके सम्मान की सूखी रोटी
हर बार  झपट ले जाते हैं   ........ लार टपकाते कुत्तों के झुंड | 

कब तक रुकेगा मन



- इंदु बाला सिंह


बनीं इतनी दूरियां    ....... भला कैसे
कब तक रुकेगा   ...... मन आदमी का
बनने से लुटेरा     .......
आखिर क्यों है    ..... एक घर  भूखा
दूजे घर का डस्टबीन   ...... दिन भर के जूठन से भरा |

रविवार, 26 जून 2016

आत्मसुख



-इंदु बाला सिंह


बड़ा कठिन है काटना   ........  झूठ के जाले
हर सुबह बिनने  लगता है इंसान  .... मकड़ी सरीखा  ......  जाला    ..... न जाने क्यूं  
वह मिटा डालता है अपनी प्रतिभा .........  एक सरल इंसान को फंसाने में ....
यह कैसा सुख है    ....जो  ....  आत्म सुख देता है उसे .... किसी अबोध को तड़पाने में   | 

असमानता




- इंदु बाला सिंह



तुम सूरज हो ..... में धरती
बेहतर है  ...... हम दूर रहें  ....... अपनी परिधि में ही विचरण करें  .......
यह न पूछना - आखिर क्यूं   | 

बिना श्रम के मिला पैसा


- इंदु बाला सिंह

नौकरीपेशा पिता की मौत के बाद
बैंक अकाउंट का पैसा इकलौती बेटी के पास आ गया था .....
वह पैसा लड़की के पुरुष मित्र को   ....  उसकी मुसीबतों के पल में काम आता था
आये  दिन अपनी पत्नी और चार बच्चों की समस्याओं का दुख बांटते बांटते वह पुरुष मित्र उसे अपना सा लगने था   .......

एक दिन ... लड़की फांसी से लटकी मिली |  

शुक्रवार, 24 जून 2016

बंजारे



- इंदु बाला सिंह

बैंकों ने समझाया
मां - बाप की अहमियत
खेत खलिहान की अहमियत
कोई कर्ज देने को तैयार ही न था शहर को  .....
नौकरी ने समझायी
मूल गांव का अस्तित्व
वर्ना
हम तो बंजारे थे | 

गुरुवार, 16 जून 2016

मौन छायायें

Indu Bala Singh

अल्ट्रासाऊंड से पता चला
दुःख है गर्भ में .......
डाक़्टर ने समझाया - गिरा दो गर्भ  ...
संतान तो प्यारी होती है
और वह भी पहली संतान !
कभी नहीं मुक्त होउंगी अपने अंश से .........
आज  सबने छोड़ा   साथ  मेरा ......
दुख   ...... मेरी कलम में स्याही सा चढ़   ....... रंग रहा है  सफेद कागज  .....
न जाने क्यों आ खड़ी हो गयी  हैं मेरे इर्द गिर्द ........   न जाने कितनी  मौन छायायें | 

सोमवार, 13 जून 2016

उलझनों के धागों का स्वेटर



- इंदु बाला सिंह


उलझनें
सुलझायी  मैंने
फुरसत के पलों  में .......
टूटा न
एक भी धागा ........
काले , सफेद धागों  के गोलों से भरी  मेरी आलमारी
प्रेरित करती है मुझे
बनाने  को स्वेटर .......
क्या तुम पहनोगे मेरे बनाये   स्वेटर ?
सम्हाल के रखना तुम
मेरे  स्वेटर  .........
तुम्हारे आड़े वक्त पे
काम आयेंगे
ये स्वेटर । 

शुक्रवार, 3 जून 2016

पसर जायेगी धीरे धीरे



- Indu Bala Singh

बुलाओ तो नहीं आएगी ईमानदारी पल भर में तेरे घर में ....... पर आयेगी वह तेरे घर जरूर तेरा अड़ोस पड़ोस , मुहल्ला देखकर ....... और पसर जायेगी ...... 
धीरे धीरे वह तेरे चारो ओर ।

गिरे हुये लोग




Indu Bala Singh


आँख से गिरा  आंसू
और
निगाह से गिरा  इंसान
न जाने कहां खो  जाता है  । 

मंगलवार, 31 मई 2016

हिस्से की छांव


पिता ने वादा किया 
सुरक्षा देने का
जमीन जायदाद में हिस्सा देने का
अपनी बेटी से ..
शर्त छोटी सी थी ....... बस अपने निकम्मे जीवनसाथी को त्यागना होगा .........
पिता अपना वादा भूल गये ....... गुजर गये .......
पर
बेटी अपने पिता का वादा याद रखी ......
कुम्हलाती रही
अपने हिस्से की छांव तलाशती रही |

गुरुवार, 26 मई 2016

आंखेंं खुश्क रहें



-इंदु बाला सिंह

यारा !
रो लेना
इतना ...... अकेले में
कि
आंखेंं खुश्क रहें   ... सबकी ईर्ष्या की पात्र रहें ...
तेरे आफिस में । 

रविवार, 22 मई 2016

मैं न पहचानूं तुम्हें



- इंदु बाला सिंह

जिंदगी ने सिखाया जीना
समझौते करना
अकेले में दो घूंट रम पीना
अपनी मौज में रहना  .....
तुम कौन हो ?
मैं न पहचानूं तुम्हें
और क्यों डालूं जोर  ....... अपने दिमाग पे
पहचानने के लिये ........ तुम्हें । 

शनिवार, 21 मई 2016

सफलता का आकांक्षी





-  इंदु बाला सिंह


कल रात आंधी आयी
बलशाली की हुयी कमायी
सूर्योदय से पहले
कट गये  ........ शहर के  ... पार्क के  ...... सारे धराशायी पेड़     .....
सफलता का आकांक्षी ....  सदा सोता कच्ची नींद
क्या पता ..... कब अवसर खटखटा दे
उसके द्वार । 

गुम जाती है लड़की




-इंदु बाला सिंह




सुनसान बालकनी में
आ खड़ी होती है कभी कभी एक सात वर्षीय लड़की
और वह मुझे खींच ले जाती है मुझे मेरे गांव में
दिखाती   है मुझे पोखरी ........ खेत ...... मेरी अपनी बखरी   ....स्टेशन से गांव तक पहुंचने के ऊबड़ खाबड़ रास्ते   ......
फिर दिखलाती है वह मुझे मेरे पिता के हाथों में लटकती अमीरती भरी हांडी  .........
फिर ......वह लड़की कहीं गुम  जाती है । 

गुरुवार, 19 मई 2016

होनी



-इंदु बाला सिंह

होनी !
गर तुम्हारा  गरूर बढ़ गया है
और तुम पर्वत बन आ खड़ी हो  मेरी राह में
तो मेरे हाथ में भी छेनी और हथौड़ा है .......
मुझे राह बनाना आता है । 

बुधवार, 11 मई 2016

माँ की गाली



-इंदु बाला सिंह


उठा के फेंक दूंगा  ........
उसके बाद आठ वर्षीय छात्र के मुंह से   निकली  एक भद्दी सी
 मां के नाम की गाली
अपने प्रतिद्वंदी के लिये  ........
वह छात्र भूल चुका था
कि
उसकी माँ अभी जिन्दा है ।

सोंच और सिक्का



- इंदु  बाला  सिंह


सोंच को नदी बना
ओ रे मानव !
अनुभूति  राह की ऊबड़ खाबड़ भूमि , बदलते मौसम से गुजरती हुई
जब जब हर रात लौटेगी तेरे पास
बना जाएगी
वह तेरी चेतन   भूमि को उर्वरा   .......
सावधानी से रखा सिक्का ही आये ........समय पे  काम
रिश्ते न जानें कब गुम  जायें
जीवन के किसी मोड़ पे । 

शुक्रवार, 6 मई 2016

भले ही तन काठ बन जाये


06 May 2016
12:56
-इंदु आला सिंह


आस की डोर टूट गयी हो
और गर राह आगे जा रही हो
तो बेहतर है चलना ....
धीरे धीरे चलते रहना ......
चेतन ज्योत जलाये रखना ....
बस ...... बढ़ते रहना आगे ही आगे ...
भले ही तपन बना दे .......भींगा तन काठ |

अस्तित्व रेखा


06 May 2016
12:46

-इंदु बाला सिंह

कहते हैं - गुलामी अभिशाप है.......
और मैं कहूं - मानसिक गुलामी उससे बड़ा अभिशाप है .....
क्रूर विधि की स्मृति रेखा सरीखी औरत से बड़ा गुलाम न देखा मैंने आज तक .....
न जाने कब खींचेगी वह ....... अपनी अस्तित्व रेखा |

बुधवार, 4 मई 2016

कंधे की तलाश


04 May 2016
17:58

-इंदु बाला सिंह

हैरान हूं मैं आज ......अपनी सोंच पे
आखिर क्यों तलाशती रही .... आस करती रही मैं सुकून के लिये
कोई एक मित्र कंधा ......
कैसे मैं भूल गयी थी कि कंधा तो लोग शव को देते हैं .......
फिलहाल मुझे शव बनने की कोई चाह नहीं |

प्रार्थना विष है


25 April 2016
15:30
-इंदु बाला सिंह
कहते हैं
प्रार्थी को दान दे कर
उसे गुलाम न बना पायें हम
तो
बड़ी जल्दी वह ढूंढेगा ....मौका
सबके सामने हमें लज्जित करने का ...... अपमानित करने का ..........
शायद अव्हेत्न में छिपे इसी भाव के तहत
आजीवन दान नहीं दिया मैंने ......भीख नहीं दिया किसीको .................
बस प्रार्थी को समय के हवाले कर
उसके ......पीठ पीछे
उसके गुणों का बखान किया |

रविवार, 1 मई 2016

कूड़ेदान



- इंदु  बाला सिंह


कूड़ा फेंकने के लिये एक दिन बना ईंटों की   जोड़ाई से बना घेरा .......
मेरे घर के सामने कूड़ेदान बनेगा ?
एक दिन
थोड़ा टूटा कूड़ेदान  ....
और कुछ दिनों में अनधिकृत बस्तीवाले उठा ले गये ईंटें .......
अच्छा हुआ
कचड़ा चुननेवालों को आसानी हो गई ........
पूरे सड़क पर कचड़ा बिखरा रहने लगा
कुत्तों को भी कचड़े से खेलने के लिये विस्तृत जगह मिल गयी  .......
अबकी कूड़ा फेंकने के लिये  से क्रेन   से ला  कर रखे गये    बड़े बड़े डस्टबीन ......
कचड़ा चुननेवाले और कुत्ते हार न माननेवाले थे
वे  सूर्योदय से पहले ही कूद जाते थे
इस नये पांच फिट ऊंचे , चार फ़ीट चौड़े और  दस फ़ीट लम्बे डस्टबीन में .......
कचड़ा अब भी सड़क पर बिखरा रहता था   ........
कुत्ते , कचड़ा चुननेवाले और डस्टबीन रखनेवाले तीनों  लगे थे अपने अपने कामों में
तीनों के जीने का जरिया कूड़ेदान था । 

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

पहली बारिश




-इंदु बाला सिंह आज गरज गरज कर बादल ने अपने छोटे भाई सूरज को धमकाया ......... वह वह कहीं छुप गया है ....... ठंडी हवा चल रही है।....... बादल ने आश्वासन दिया है हमारे शहर को वह हमारी सड़कें धो देगा ..... पेड़ पौधों को सींच देगा ....... आज जी आशान्वित है ..... यूँ लगताहै आज अंकुरित होगा ...... सूखा जी ।

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

लौट गया बेटा अपनी नौकरी पे



- इंदु बाला सिंह

मॉम बाइ ....... कहा उसने  .......
आया था    .....   लौट गया बेटा .......
अपनी  नौकरी पे अमरीका .....
और पार्क में सुबह की सैर करते वक्त भींग गया मन मेरा  ........
माँ की गोदी में ही अपना  पिता खोये बेटे को सहारा था अपने देश में रहनेवाली माँ का
और
उसे सहन योग्य था वह अंकल जिसने माँ का हाथ थाम
समाज में   सर उठा कर जीने के सपने दिखाए थे
मां  के कदमों को मजबूत किया था   ........
मां आज सुबह सुबह ही  पार्क में  गयी । 

मंगलवार, 19 अप्रैल 2016

पानीदार




-इंदु बाला सिंह

कैसे हैं हम
कैसा है हमारा दिल
चारों ओर मचा है पानी के लिये हाहाकार
हमारे घरों में नल  से बह रहा है ढेर सारा पानी
हम अपनी गाड़ियां नहला रहे  हैं
घर  सामने लगाये  हैं सीमेंट का का हौदा   ........ भरा रहता है सदा पानी से   .......
सड़क से गुजरने वाले कुत्ते पानी रहे हैं .... गायें पानी रही हैं    ........
हम पूण्य कमा रहे हैं   ......
और
हमारे रिश्तेदार मर रहे  हैं सूखे से गांव  में     ....
अरे !
मैंने गोद  लिया है न एक गांव.......
मेरी की कामवाली  ..... मेरे आफिस के कर्मचारी  ......... फैकट्री के कर्मचारी  सब को प्रोविडेंट फंड  हकदार बनाया  है मैंने   .......
मैं अपने निकटस्थ का  शुभचिंतक हूं  .........
मैं पानीदार हूं  । 

पार्क


 - इंदु  बाला सिंह

स्कूल की छुट्टियों में सूर्योदय से सूर्यास्त तक पार्क चहकता है
बच्चे  खेलने आते हैं
चेहरे  बदलते रहते हैं    .........
बसी रह जाती हैं
यादें......... मस्तियां बचपन की  .........
यहीं तो खेलते  थे क्रिकेट ......
और
यहां खेलते थे हम बैडमिंटन
रात में   ....... ले के   सामने वाले अंकल के घर से बिजली का कनेक्शन .........
आज पार्क खुश है
एक बच्चे को चार तल्ला बिल्डिंग ठोंकते देख  अपने बगल में   ......
पार्क के बच्चे बड़े  रहे हैं   ......... बाल बच्चेदार हो रहे हैं  ......
पर
पार्क आज भी युवा है । 

बुधवार, 13 अप्रैल 2016

आम का पेड़ सूख गया है


13 April 2016
23:09
-इंदु बाला सिंह
आखिर एक दिन काट दिया उसने आम का पेड़
सूख गया था न वह ...........
अब किस काम का था वो ......
किसने देखा था उसे पेड़ के नीचे कचड़ा जलाते ......
यह उसे भी मालूम था कि लोग जानबूझ कर अनजाने बने हुये थे ........
मकान के अच्छे दाम मिल जायें तो ठीक ..........
नाऊ का बेटा बड़ा हो गया था
वह अब अपने पिता की दाढ़ी मूड़ रहा था |

पुत्र प्रेम में मतवाली



-इंदु बाला सिंह



अस्सी वर्षीया मां  को रोटी बनाना सिखा  रहा था बेटा ........
कामवाली की क्या जरूरत है ?
आखिर पैतृक  मकान का किराया भी तो बचना था   .......
न जाने कैसे हजम होता है युवा पुत्र को वृद्ध हाथों का पका खाना .......
ऐसे बेटे से तो निपूती ही भली थी तू
ओ री ! पुत्र प्रेम के नशे में डूबी मतवाली ....... पूतवाली ।

मंगलवार, 12 अप्रैल 2016

गर्मी में स्कूल बंद



-इंदु बाला सिंह


सूरज गुस्सा है ... उसका टेम्प्रेचर चढ़ा हुआ है
सरकार ने  स्कूल बंद कर  दिया है ....
घर में दिन भर ए० सी० चल रहा है   ....... बिजली का बिल बढ़ रहा है
मम्मी का पारा  चढ़ा हुआ है .....
बच्चे बौखला गये है  ......
काश हर घर में दो बच्चे होते
तो
वे मम्मियों को नाकों चने चबवाते । 

पानी की समस्या





- इंदु बाला सिंह


पानी की समस्या गरीबी का उन्मूलन करती है ......

गरीबों की जनसंख्या घट रही है .......

मैं खुश हूं

मेरे अखबार के पास ज्वलंत मुद्दा है  । 

बुधवार, 30 मार्च 2016

महाभारत



-इंदु  बाला सिंह

आईना दिखा देती है   बहू
बेटे की बदौलत सुख संसार का स्वप्न देखनेवाली माँ को   .......
कन्यादान का पूण्य नहीं काम आता है
जब मचाती है बहू  ....... घर में महाभारत । 

माइक के चोंगे से सजी बोलरो




- इंदु बाला सिंह


होल्डिंग टैक्स की अदायगी के लिये अनाउंसमेंट हो रहा था -
टैक्स अदा करें आज बारह बजे तक अन्यथा म्युनिसिपलिटी की तरफ से कार्यानुस्थान  किया जायेगा .. ....
मेरी आँखों के सामने से जंग लगी ...... माइक के चोंगे से सजी बोलरो गुजर गयी   .......
नन्हा बोल पड़ा   -
सड़क पर इतनी पुरानी गाड़ी चलना मना है न मम्मी । 

मन भागे



- इंदु बाला सिंह

ब्याहता बेटी का ...... न कोई मां ....... ना बाप .........
स्वार्थ का सब संसारा
मोह धागे में बंधा मन ...... भागे ... आशा संग .......
तृषित आँखे ..... खोजें .....
पार्क के दौड़ते बच्चों में ....... बचपन ...... खोया अपनापन ।

मंगलवार, 29 मार्च 2016

कामवाली खुश है




- इंदु बाला सिंह


आज कामवाली खुश है
वह बार बार रट रही है
वह आदमी बोल रहा है - आपका बेटा बहुत बड़ा आदमी बनेगा। .. उसे मेरे साथ बंबई जाने दीजिये   ...... बंबई जाने के लिये लोग तरसते हैं   ......
और मैं सोंच रही हूं - आखिर मैट्रिक पास लड़का अंजान शहर में अपनों से दूर कैसे रहेगा   ......
पर कामवाली खुश है । 

शनिवार, 26 मार्च 2016

जड़ें जरूरी हैं



- इंदु बाला सिंह




आदमी को जीने के लिये
जड़ें जरूरी होती हैं
वर्ना
वह तड़पता रहता है   ...... भटकता रहता है
प्यासा ही रह जाता है वह   .......  सगों के... अपनों के मान का   ...पहचान का  । 

बुधवार, 23 मार्च 2016

ये लो ! काट ली मैंने पतंग



-इंदु बाला सिंह


एक ई मेल पर  क्लिक से
उड़ी मुन्ने की पतंग
और
चलने लगा दांव पेंच
पतंग काटने का  .......
यह काटा  ..... अरे रे रे काटा ....... लो कट गयी पड़ोसी की पतंग   .......
मुन्ना किलक उठा  ...... अहा ! मैं राजा हूं  |

गांव से कितने दूर हैं हम


-इंदु बाला सिंह


' गांव ' एक खूबसूरत शब्द है 
शहर में खूब चलता है यह शब्द
शान बढ़ती है हमारी किस्से सुना के ......... अपने गांव के
यह अलग बात है
कि
हमारा कोई पैतृक निवास नहीं होता गांव में
गांव की धूल और खेत से अपरिचित रहते हैं हम
पर शान से सुनाते हैं हम
किस्से
अपने गांव के ..........
हैरान हो जाती हूं मैं
देख के
युवा दंपत्ति को भी सुनाते ...... रीति रिवाज के किस्से ...... गांवों के .......
गांव हमारी नीव है......... पहचान है
तो क्यों कटते हैं हम
अपने गांव में बसे पुश्तैनी रिश्तों से ......
क्यों लटकते हैं किसान पेड़ों से
आखिर क्यों छलते हैं हम खुद को
दूसरों को ......
नई पीढ़ी को मोह है गांव का
पर
दूरी बन गयी है अब गांवों से
हमारे बच्चों की .......
आज कहानियों में बसे हैं गांव
मेरे बच्चों के ..........
कहीं ..... कुछ तो गलत है
कि
खेतों से दूर जा रहे हैं हम .......
विकास  ...... परिवर्तन की  आंधी के नाम पे
मैं गई शहर
और
मेरे बच्चे ...... रसोईं का भोजन ........... मसालों की खुशबू छोड़
विदेश जा रहे हैं
डिब्बे का भोजन और ब्रेड खा रहे हैं .........
काल्पनिक गांवों के....... किस्से सूना रहे हैं ......
.................
.........
विचारमग्न है जी
खुद की गलती मानने का मनोबल को तलाश रही हूं
लौटा लाने की चाह है
वापस अपनी संतानों को
अपनी जमीन पे
कि
मिट्टी की खुशबू पुकार रही है ...........
जड़ें मांग रहीं हैं ...... पानी ........... खाद ।

मंगलवार, 22 मार्च 2016

जलाने का सुख



- इंदु बाला सिंह



जलाने में आता है कितना आनद
जरा बच्चे से पूछो न
माचिस की डिबिया मिली नहीं कि एक एक तीली जला के पाता है वह आनद ......
फिर
जलाता है वह कूड़ा
जलती आग
समाप्त करती है उसका भय आग से   .........
आनंद  आने लगता है उसे
जलाने में
जो न मन भाया   ......
जिस पर क्रोध आया
जला दिया
सबूत भी मिट गया .......
कितना सुख मिलता है हमें ........ अनचाही वस्तु जलाने में   ।

कब तक जलती रहोगी तुम



- इंदु बाला सिंह

कब तक बैठती रहेंगी होलिकायें आग में
गोद में ले  प्रह्लाद को  .....
जीतीं हैं  ........
मिटती  हैं घरों में
आज भी ..... होलिकायें  ।
...........
 .........
ओ होलिका !
आखिर कब तक जलोगी तुम
क्या यूँ ही मिटती रहोगी सालों साल |

अंधियारे का सन्नाटा



- इंदु बाला सिंह


चलना है सन्नाटे में
अंधियारे में
डूबे हुये ......  खोये हुये   ...... अपने में  ......
कि
थका है   ........ चिंतित है  .....
आज मन
आखिर कब तक !
आखिर कब तक चलना है यूँ ही सन्नाटे में   ...........  अंधियारे में  .......
सन्नाटे की ताकत गजब की है
थकता नहीं
पर
ऊबता है जी  .......
मौन
चिरंतन है मौन  ........
अनुत्तरित हैं दिशायें आज भी
आखिर क्यों ?
आखिर कब तक मौन रहेंगी दिशायें । 

दिन अभी बाकी है




-इंदु बाला सिंह

चल उठ कि दिन अभी बाकी है
कहानी अभी बाकी है .........
आग अभी सुलग रही
जरूर  कोई चिंगारी दबी होगी राख की ढेरी में   । 

शुक्रवार, 18 मार्च 2016

शक्ति



- इंदु बाला सिंह


प्रकृति से बड़ी
कोई 
शक्ति नहीं
वह शून्य में मिले
या
स्वयं में । 

गवाह नहीं होते मानसिक युद्ध के




-इंदु बाला सिंह

सैनिक हूं
पर हथियार नहीं  हाथ में ..........
गवाह नहीं होते मानसिक युद्ध के
बस मानसिक संतुलन की बदौलत जीत ही लेती हूं
हर छोटे छोटे युद्ध । 

गुरुवार, 17 मार्च 2016

मैं गरीब हूं



-  इंदु बाला  सिंह


मैं
गरीब हूं  .......मजदूरनी  हूं
यह बात आज मैं खुशी से कह  सकती हूं  .......
मैं आज में जीनेवाली प्राणी हूं
बीता कल देख चुकी
आनेवाले कल की चाह नहीं ...........
मैंने कितनों के स्वप्न महल की नींव डाली
कोई गम नहीं
कि मैं खुद छत हीन हूं   .......
खुश हूं
क्यूं कि मैं गरीब हूं  ....... अभावग्रस्त हूं  ...... आत्म निर्भर  हूं ।
  

खेलती तू तो आँख मिचौली



-इंदु बाला सिंह

ओ री दुनिया !
हर सुबह पढ़ती हूं तुम्हें
नित नये पन्ने दिख जाते हैं
और मैं कौतुक पूर्ण नेत्रों से देखती रह जाती हूं तुम्हें   ..........
ऐ री दुनिया !
ओ रंगीली ! ....... खेलती तू तो आँख मिचौली   ........
मनभावन है तेरी हर अदा
रहना तू ......... ऐसी ही सदा  । 

जय हो तेरी चूहे !



- इंदु बाला सिंह

घर के बड़े बूढ़े न कर सके जो काम
वह कर दिखाया एक छोटे चूहे ने ......... घर व्यवस्थित हो गया ...... सुघड़ हो गया ...... जय हो तेरी चूहे ! तू महाबली ।

मैं चुप रहती हूं



- इंदु बाला सिंह

घर में
मना है हंसना मुझे
अनचाही अस्तित्व हूं मैं
बेटी हूं न
इसलिये ...... मैं चुप रहती हूं |

हम आदिमानव बनते जा रहे हैं



- इंदु बाला सिंह

घर में पनपे
जब
राजनीति
और
लगें पेड़ झूठ के
तब
घर की परिभाषा ही बदल जाती है   ........
घर के सदस्य अंधाधुंध दौड़ने लगते हैं    ........
यह अंधी लक्ष्यहीन ईर्ष्यालु प्रतिस्पर्धा जीवित कर देती है पशुता घर के सदस्यों में   ...........
गजब है
न जाने क्यूं
यूँ लगने लग रहा  है
हम आदिमानव बनते जा रहे हैं
दिमाग , सहिष्णुता , रिश्ते की कोई  मर्यादा ही नहीं  ...........
हर कोई रेंक रहा है   ......... मैं  .... मैं  । 

रविवार, 13 मार्च 2016

अनोखी शिक्षिका



-इंदु बाला सिंह

नर्सरी कक्षा के दरवाजे के बाहर खड़ा था
एक नंग धड़ंग बच्चा   .....
और
मेरी सिट्टी पिट्टी गुम   ...........
यह
कैसी सजा थी  ........
कैसा वातावरण था ...........
कैसा हृदय था शिक्षिका का  ...........
जो न दीखता था
किसीको  ।  

शुक्रवार, 11 मार्च 2016

अभाव का ईंधन



-इंदु बाला सिंह


लड़कियों
निकलो सड़क पे
हर दिन  कम से कम एक बार  निकलो सड़क पे
दिन या रात का परवाह किये बिना ..... बस निकलो तुम अपने घर से
आजाद हो जाओगी तुम
पर यह याद रखना तुम सदा विचारों की आजादी मिलेगी तुम्हें
तुम्हारी आर्थिक आत्म निर्भरता से    .........
उड़ो लड़कियों !
उड़ो कि यह आकाश तुम्हारा  है ......... हर सफल जीवधारी का है   ......
अभाव का ईंधन खत्म होने तक कर लो सैर । 

वरदान है अभाव


11 March 2016
13:46

इंदु बाला सिंह



अभाव में रचनात्मकता है ....चिन्तन है ......
पर
मनोबल तगड़ा होना चाहिये
तो
क्यों न मानूं मैं  वरदान अपने अभाव को |

गुरुवार, 10 मार्च 2016

ईश्वरत्व


11 March 2016
08:36

-इंदु बाला सिंह


नेकी कर के
हम याद रखते हैं
याद दिलाते हैं इश्वर को
कहते हैं - बहरा है ईश्वर ..............
आखिर क्यों नहीं भेजते वे किसी को हमें उपहार देने के लिये |
पर
भूल जाते हैं हम
वह अहसास जो हमने पाया था नेकी करते वक्त
भले ही पल भर के लिये
हमारे मन में सोया ईश्वरत्व जागा तो था |