गुरुवार, 15 सितंबर 2016

तेरी ' मधुशाला '


Thursday, 15 September 2016
1:25 PM
इन्दु बाला सिंह


ओ ' मधुशाला ' के कवि !
मेरी दुश्मन है मधूकलश और  मधुशाला ......
तेरी आत्मकथा ने ………मोह लिया मुझे

पर बाँध न सकी    …… मधुशाला ……  निज  सम्मोहन में   ……   न जाने क्यूँ …….

कितने घर उजाड़े  ……   रंग रंगीली  मधुशाला ने  
आकर्षित करती हारे मन को  …… हर मधुशाला   
ख़ुद चमकती  …..वह  …..मुस्काती  लूट  ……  नित   नए रईशों का बैंक बैलेंस
तूने तो लिखी  …..   'मधुशाला '  …..   बिन पिये
और
मुझे भी  भाने लगी

आज  …….बिन पिये   …….तेरी ' मधुशाला '  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें