रविवार, 28 अगस्त 2016

घर और इंसान



- इंदु बाला सिंह

होता है
जी होता है
हर घर में ऐसा होता है
एक लड़की भाग के घर बसायी होती है
एक पुरुष ने अपने भाई का हक मारा होता है
एक भाई अपनी बहन का  पैतृक हक निगल के बैठा होता है
एक जेठ  भयो के ट्रंक का ताला तोड़ तृप्त  हुआ  रहता   है
एक मर्द अपने बेटे के सुख के लिए ब्याहता  ग़रीब बेटी के सुख को  भूल  जाता  है
एक मर्द अपने सुखद भविष्य के लिए अपने माँ बाप के प्रति फ़र्ज़ भूल जाता है
एक लड़की भ्रूण हत्या कर अपना सुख ख़रीद लेती है
हर घर का  मज़बूत सदस्य अपने सुख के लिये नित नये हथकंडे अपनाता है
फिर भी
घर तो घर होता है   ........
इंसान है तो गलतियां होती हैं   ...... हर सुबह हम गलतियों को धो कर बहाते हैं
कीचड़ में ही तो आशा का कमल खिलता है   .......
होता है
भाई होता है
हर घर में ऐसा होता है । 

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