- इन्दु बाला सिंह
कभी न मन किया लिखने का तुम पर
तुम ...... निहंग नहीं हो ....... अभागे नहीं हो
मुझ सरीखे इंसान हो ......
मुझे
नहीं है सुख पाना ...... लिख के तुम्हारी अज्ञानता पे
तुम्हारी टूटी झोपड़ी पे ..............
घर तो महल में भी बसता है
और
मिट्टी के घर में भी ।
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