-इंदु बाला सिंह
अस्सी वर्षीया मां को रोटी बनाना सिखा रहा था बेटा ........
कामवाली की क्या जरूरत है ?
आखिर पैतृक मकान का किराया भी तो बचना था .......
न जाने कैसे हजम होता है युवा पुत्र को वृद्ध हाथों का पका खाना .......
ऐसे बेटे से तो निपूती ही भली थी तू
ओ री ! पुत्र प्रेम के नशे में डूबी मतवाली ....... पूतवाली ।
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