Tuesday,
December 27, 2016
4:10 AM
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यूँ कहते हैं
दुश्मन हो
जाती है जब दुनिया
और
......सहोदर हो जाते हैं पराये
तब
समझ लेना ... तुम सही राह पर हो
पर ...... तब
कितना कठिन होता है चलना
घने अंधकार
में ......दूर आकाश की ओर तकना
सूर्योदय की
अपेक्षा करना ....
अपने आर्थिक
अभाव में ......अपनों के बदले चेहरे देखना ......
याद आती हैं
मनभावन पुस्तकें ..... उसकी नसीहतें .....
झूठ मत बोलना
दुष्टों का
अंत बुरा होता है
ठंड में
ठिठुरती खुशी बोल उठती है ......पर वे खुशी खुशी जी तो लेते हैं
मोह न पायें
मुझे .... मन्दिर , मस्जिद , मधुशाला
ये किसी
घुट्टी पी ली मैंने
जी जलाया समय
ने
प्रेम रूठा
..... सो गया गहरी नींद में ......जगाने का गुर न जानूं |
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