शुक्रवार, 24 जून 2016

बंजारे



- इंदु बाला सिंह

बैंकों ने समझाया
मां - बाप की अहमियत
खेत खलिहान की अहमियत
कोई कर्ज देने को तैयार ही न था शहर को  .....
नौकरी ने समझायी
मूल गांव का अस्तित्व
वर्ना
हम तो बंजारे थे | 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें