गुरुवार, 17 मार्च 2016

खेलती तू तो आँख मिचौली



-इंदु बाला सिंह

ओ री दुनिया !
हर सुबह पढ़ती हूं तुम्हें
नित नये पन्ने दिख जाते हैं
और मैं कौतुक पूर्ण नेत्रों से देखती रह जाती हूं तुम्हें   ..........
ऐ री दुनिया !
ओ रंगीली ! ....... खेलती तू तो आँख मिचौली   ........
मनभावन है तेरी हर अदा
रहना तू ......... ऐसी ही सदा  । 

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