30 August
2014
12:30
-इंदु बाला
सिंह
न जाने
कैसे लोग
होते हैं वे
जो अपने
सपनों के मरते ही
तुरंत ही उनका
किरिया-करम कर देते हैं
मैंने देखा
था उसे
वह वर्षों से
अपने सपनों की लाश ढोए चली जा रही थी
अपने कंधे पे
और
उसने
आईना देखना छोड़ दिया था
मुझे हैरत थी
उसपे
उसके अपने
सपनों के जी उठने की आशावादिता पे |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें