गुरुवार, 4 सितंबर 2014

झूठ का धागा


03 September 2014
09:34
-इंदु बाला सिंह

कुछ आकृतियां
पहाड़ के बगल बैठ
धुनती रहती थीं पहाड़ की रुई
और
बनाती रहती थीं झूठ का धागा
उस धागे से
वे कपड़ा बुनती थीं
कभी कभार उस धागे को अपनी अपनी लटई में लपेट
उड़ाने लगतीं अपनी अपनी पतंग
ये निस्तेज आकृतियां
आज भी जीवित हैं
पहाड़ के सहारे |

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