शनिवार, 20 सितंबर 2014

नून जिन गिरावा भुईयां


20 September 2014
20:37
-इंदु बाला सिंह

याद आयी
आज तुम दादी ....
अरे बचवा !
नून जिन गिरावा भुईयां
बरौनी से उठावे के पड़ी
और
नौ वर्ष की उम्र में
सोंचती थी
अचम्भे से मैं .......
कैसे उठाते होंगे बरौनी से नमक
उम्र होने पर समझ आया
उस नसीहत का अर्थ
पर
आज जब दिखता है
मुझे
घर के सामने पड़े
रोटी के टूकड़े
चहले जाते
लोगों के पैरों से
तो
सोंचता है मन
जरूर  इन्हें
तुम जैसी दादी न मिली होगी |


एक सवाल डिक्शनरी से


20 September 2014
09:03

सुन डिक्शनरी !
त्तेरे अनुगामिनी शब्द ने
ऐसा जादू डाला है
कि
आज हर स्त्री तलाशती  एक पुरुष
जिसकी
वह अनुगामी बन सके
स्त्री खुश है
घर में
और पुरुष पिछड़ रहा है
घर ढो ढो के
चिंतित रहता है वह सदा
सडकों पर असुरक्षित हैं बेटियां
सुन !
मैं उस शब्द को
तेरे शब्द कोष में न छापूँ
तो
तुम दुखी तो न होगे |

गुरुवार, 18 सितंबर 2014

गरीब की बेटी


18 September 2014
23:22
-इंदु बाला सिंह

रो पड़ी मैं
गरीब हूं तो क्या
मैं तुम्हारी सन्तान नहीं
तुमने
मुझे परदे में ढंक
मेरा अपमान किया
मुझे तो
अपनी स्थिति पर मान था
मेरा भी मन था
मेरे घर के सामने से गुजरनेवाले बड़े आदमी को देखने का
कभी तो
मैं भी पढ़ लिख कर
बड़ी बनूंगी
पर
मै भूलूंगी अपने साथियों को |

जीत की आकांक्षा


18 September 2014
20:46
-इंदु बाला सिंह

वह मुहल्ले की
एक अनोखी महिला थी
जिसे देख
पुरुष मौन थे
और
महिलायें तटष्ठ थीं
उस मित्रहीन के मन का युद्ध कौशल
गजब का था
जो
कभी न समझ पाया कोई निकटस्थ
न जाने
ये कैसी प्यास थी उस की 
अपनी मुक्ति की
कि
जो मिटाये न मिटी कभी
उसके मन से
और
हैरतजनक कर्तव्यबोध था
उस में 
जो
उसे सदा कमर से फेटा सदा बांधे रखने को
प्रेरित रखता था
शायद
समय के कोप ने
उसे सेनानी बना दिया था
और
वह क्रुद्ध हो
समय से युद्ध कर रही थी |

मुक्त करो प्रतिभा को


18 September 2014
18:34
-इंदु बाला सिंह

प्रतिभा तो 
अविष्कार की जननी
उन्मुक्त आकाश की संगी  
मुक्त करो उसे
पिंजरबद्ध न रह पायेगी वह
गर
तेरी टेलीपैथी में है दम
तो
एक दिन
लौटेगी वह जरूर
अपने वैभव से जगमगाने
तेरा घर |


जिन्दगी से प्यार है मुझे


18 September 2014
08:37
-इंदु बाला सिंह

जिन्दगी ने प्यार किया मुझे
और
मुझे भाती थी मौत
पर
कहते हैं न
जो तुम्हें प्यार करे
उसके साथ
बसना अच्छा
देखो मेरा एक खुबसूरत संसार बसा
अब
जिन्दगी गाती है
जहां तू वहां मैं साथी .......
मृत्यु आती है
ढूंढ लेती है मुझे
पर
लौट जाती है वह
अब मुझे जिन्दगी से प्यार हो गया है |

मंगलवार, 16 सितंबर 2014

मन तो पंछी है


17 September 2014
07:49

-इंदु बाला सिंह

मन तो पंछी होता है
चहचहाता है
उड़ता है
इस डाल से उस डाल
उड़ जाता है
कभी साइबेरिया में
तो
कभी थार के रेगिस्तान में
और
फिर लौट आता है
अपने घोंसले में
सो जाता है
सपने देखता है
रात में |

निर्मल हृदया


17 September 2014
07:28

-इंदु बाला सिंह

नदी का जल होती हैं बेटियां
सींचती हैं
जोड़ती हैं
तृप्त करती हैं
गन्दगी ढोती हैं
और
मिल समुद्र में नमकीन हो जाती हैं
सुनामी ढाती हैं
निर्मल हृदया बेटियां |

पुत्रवती


16 September 2014
09:32

-इंदु बाला सिंह

काश मेरे लिये भी
कोई व्रत रखता
मेरे भाई की तरह .......
और
बेटी
ब्याह के बाद
खुश हुई
क्योंकि अब वह पुत्रवती थी |

मोबाईल के सिम जी !


16 September 2014
08:29

वाह जी !
मजे हैं आपके
मोबाईल के सिम जी !
अब तो आप भी
आदमी सरीखे हो गये |
हाय !
एयरटेल के सिम ने
एयरटेल को न पहचाना
और
वोडाफोन से कनफुस्सी कर लिया  |

सोमवार, 15 सितंबर 2014

बूढ़ा सूरज न भाये


16 September 2014
07:04
-इंदु बाला सिंह

उगते सूरज को
प्रणाम कर
खुश होते हम
और
डूबते सूरज को
भी
प्रणाम कर
विदा देते हम
बूढ़ा सूरज न भाये हमें
हर दिन
नया दिन हमारा
कल को हम भूल चले |

उड़ प्रेम चिरई ! उड़


16 September 2014
05:17
-इंदु बाला सिंह

जिन्दगी
सिखाती है हमें
कहना
उड़ उड़ प्रेम चिरई !
और
उड़ जाती है हमारी चिड़िया कभी न लौटने को
एक दिन हम पाते हैं
जिनके लिये लड़े हम आजीवन
वे भी
पंख मजबूत होते ही
बना लिये अपना घोसला
चूजे भी तो बड़े होयेंगे
मौसम बदलेगा
यह सब जीवन युद्ध में
सेनानी को कभी महसूस नही होता |



अपनों के अनुभव


15 September 2014
23:35
-इंदु बाला सिंह

कभी कभी
जब आँख नींद से झपने लगती है
तब
किसी की अस्फुट आवाज
गाँव की बोली में सुनायी दे जाती हैं
हम कितना भी दूर रहें
अपनों से
अपनों के अनुभव अन्तस् में सोये पड़े रहते हैं
और
वे जाग जाते हैं
कभी भी |

अपना शहर


15 September 2014
21:59
-इंदु बाला सिंह

वर्षों बाद
अपने शहर के स्टेशन पर उतरते ही
उसका बचपन चहक उठा
काबुलीवाले के मिनी की तरह
वह 
अपनी जेब की
प्लास्टिक मनी टटोला
और
आगे बढ़ गया |

रविवार, 14 सितंबर 2014

अद्भुत आत्मानुशासन


14 August 2014
12:40
-इंदु बाला सिंह

अचम्भे में थे
पड़ गये हम
जब सुने
उस विदेशी के मुंह से
कि
वे तो विद्यालय के समय से ही
अपने शरीर की भूख मिटाना सीख लिये थे
और
अब सोंच रहे हम
एक ही तरह का खाना खाने की आदत भी तो हो जाती है
तो ये लोग
समाज में
कैसे जीते होंगे ......
ये कैसा समाज गढ़ रहे हम आज ग्लोबल युग में
जहां ज्ञान की , आत्मानुशासन की भूख कम हो रही
आज  छात्र में |

तिलक माथे पे


15 September 2014
09:09
-इंदु बाला सिंह

सब विरोध में थे उसके
पर
माँ ने
विजय तिलक क्या लगाया उसके  माथे पे
सब मौन हो गये
और
बगलें झांकने लगे
माँ का ओज
अब
फैलने लगा था |

प्रकृति


15 September 2014
06:59
-इंदु बाला सिंह

तेरा अंश ले के
जन्मे
और तुझ में ही समा गये
प्रकृति
जगतजननी
हम तेरे अपने ही तो हैं
फिर
यह कोप कैसा !

भैय्या पुराण


14 September 2014
09:01
-इंदु बाला सिंह

सुबह होते ही शुरू हो जाता
भैय्या पुराण
माँ जी का
और
जितनी कामवालियां आतीं घर में
वे
सुघड़ श्रोता बनतीं
प्रवचन की
एन० आर० आई० पुत्र की बाल लीला की
आज के वैभव की
और
स्टडी टेबल पर बैठी बिटिया
ग्रीवा में धारण करती
डाईनिंग रूम से आती आवाज को |


सफेद बालोंवाली


13 September 2014
07:05
इंदु बाला सिंह

एक दुबली सी औरत आई
हमारे गेट पे .....
आपके घर कामवाली है
और मैं भौंचक हो उसका चेहरा देखने लगी
याद आया
गांवों में बाढ़ आयी है
और याद आया
अपनी कामवाली का कथन .....
सफेद बालों वाली
दुबली पतली कामवालियां  
डाइन होती हैं
उन्हें कोई काम पे नहीं रखता |

पुत्र जन्म


12 September 2014
19:50
-इंदु बाला सिंह

पुत्र जन्म की खुशी में
घर में आई
जर्सी गाय
एक दिन में दस किलो दूध
वाह !
आखिर कितना पीयेगा
बेटा
और
पड़ोसियों को खांटी दूध मिलने लगा
पर
घर की
उस बारह वर्षीय बिटिया ने
दूध पीना छोड़ दिया
जो ग्वाला से खरीदा दूध पीया करती थी
बहन को दूध देखते ही
अब
उल्टी सी लगने लगी थी |


बी० पी० एल० कार्ड०


12 September 2014
11:34
-इंदु बाला सिंह

उसका चावल
मिलाया
अपने चावल से
तो पाया
मैंने
हमदोनों के
चावल तो एक से थे
पर
दुकानें अलग थीं
धंधे अलग थे
हमारे रहने का स्तर अलग था
वह कामवाली थी
मैं
अध्यापिका थी
और
हम दोनों छतविहीन थे |

सैनिक की वर्दी


12 September 2014
08:17
-इंदु बाला सिंह

ओ सैनिक !
मेरे प्यारे सैनिक
तेरी वर्दी में तू नहीं है
तेरा देश है
सदा मान रखना
निज वर्दी की |

हमारी मित्र


12 September 2014
08:02
-इंदु बाला सिंह

आज का काम कल पे टाल
मस्त मस्त हो 
जीते हैं हम
जब मुसीबत आये तो
हमारी मित्र
हमारी सेना है
हमारी देखभाल के लिये
हमारे घर की सुरक्षा के लिये |

मुहल्ले की महिला


12 September 2014
07:10
-इंदु बाला सिंह

बड़े सोंच में हूं
मुहल्ले की 
उस
समाज सेवी महिला को
क्या नाम दूं
जो मुहल्ले के बिनब्याहे लडकों के चिंता में दुबली है
उनके बुढ़ापे की लाठी के आभाव में दुखी है
पर
घर की प्रौढ़ कमाऊ पी० एफ० इंश्योरेंशधारी बिटिया से खुश है |

बचपन की मित्रता


11 September 2014
08:45
-इंदु बाला सिंह

बचपन की मित्रता होती सूरज
दूर बैठे
बिन माध्यम
आजीवन गर्माते हम
और
एक दिन
खटिये से धरा पे
सुला दिये जाते हम |

माँ की खिड़की


11 September 2014
07:07
-इंदु बाला सिंह

अब तुम भी न मम्मी !
कमाल करती हो
टाईट टी-शर्ट न पहनें
तो कैसे पता चलेगा अब
बोलो
मैं लड़का हूं या लड़की |
सुन मुन्नी की समझदार बातें
माँ के
ज्ञान की खिड़की खुल गयी |

इन्सान हैं


10 September 2014
09:16.14

-इंदु बाला सिंह

हम इन्सान हैं
सारा जहां हमारा है
मानवता धर्म है |

रंग


10 September 2014
07:45
-इंदु बाला सिंह

चाहत बड़ी रंगीली
देख के हुआ पाठक दंग
बिन पिये
हो गयी जब कविता इन्द्रधनुष
और
मारी पिचकारी
कोरा कागज गया रंग |

बेटी


10 September 2014
07:13
-इंदु बाला सिंह

ब्याह एक उत्सव है
इसमें साड़ी , जेवर , पद
और प्रतिष्ठा मिलती है लड़की को
भले ही नाम गुम जाये
इसलिये वह खुश थी
लेकिन
होश उसे तब आया
जब उसके दो परिवार हो गये
और
वह कश्मीर बन गयी |


विजातीय बहू


09 September 2014
13:55
-इंदु बाला सिंह

पड़ोसी को लड़की न मिलती थी
बेटे के ब्याह के लिये
चतुर बेटा
आखिर कितने दिन क्वांरा रहता 
मुहल्ले की
विजातीय लड़की ब्याह
मन्दिर में
एक दिन
घर ले आया बहू
और 
पड़ोसी मन ही मन रो पड़ा
अपनी कमजोरी पर
लेकिन
दुसरे साल मिला उसे
ईश्वरीय उपहार स्वरूप एक गोरा चिट्टा नाती |

मौन विरोध


09 September 2014
13:09
-इंदु बाला सिंह

अहा !
इस बार जन्मदिन के अवसर में
मौजूद है मेरा बेटा
माँ खीर पूड़ी बनायी
टीका लगा कर बेटे को
आरती उतारने के लिये थाल सजायी |
माँ की प्रसन्नता देख रही थी
घर की बड़ी बिटिया
जिसका जन्मदिन मनाना कभी याद ही न रहा माँ को
कुर्सी पर बैठा पुत्र को
माँ ने टीका लगा
आरती उतारा और आवाज लगायी बिटिया को
भाई को उसे भी तो टीका लगाना था न
पर
बहन घर में रहती तब न सुनती
वह तो
पड़ोसन आंटी के घर घूमने चली गयी थी |



स्वर्ग


09 September 2014
08:49
-इंदु बाला सिंह

तुम्हारे स्वर्ग में मची अफरातफरी
जमीं पर उतरो
जीने दो
खींचों न तुम उन्हें अपने पाले में
वे इंसान हैं
लोहे के तार नहीं |

पन्ना धाय


08 September 2014
14:46
-इंदु बाला सिंह

प्यार से लूटनेवाले बहुत हैं जहां में
अपनों का प्यार हम खरीद लेते औरों से
पन्ना धाय खो देती
अजन्मे अपने को आज भी घरों में |
हक न छीना जिसने
वो रहता
अभावग्रस्त जीवन में
अमीरी !
कितने रूप बदलती है तू |

शासित बेटी


07 September 2014
13:17
-इंदु बाला सिंह

अपनी बिटिया को
हम बनायें स्वाभिमानी
और  आत्मनिर्भर
वरना
मनमानी मैरेज से
क्या रोकेगा कोई उसे
शासित कर बिटिया को घर में
हमने बना दिया है उसे
सोयी ज्वालामुखी
कितनी बेटी मारोगे तुम !

अभाव झेलता कर्मठ मजदूर


06 September 2014
22:52
-इंदु बाला सिंह

वह मजदूर
जिसके लिये हम तरसते हैं शहर में
भगवान बन के आया
हमारे घर में
संग लिये तीन वर्षीय बिटिया
बाप मिट्टी कोड़ता रहा
बिटिया नाली के पानी से कभी खेलती
तो
कभी घर की याद में बिलखती
उसकी माँ अस्पताल में थी
और
पिता पैसे कमा रहा था
अब फिर
जब बच्ची रिरियाने लगी
तब मैं तड़प उठी .....
अरे इतना रोयेगी बच्ची तो बीमार हो जायेगी
इसे चुप कराओ
मेरे बात अनसुनी कर मजदूर चुपचाप मिट्टी कोड़ता रहा
वह बच्ची रोती  रही
मुझे अफ़सोस हुआ खुद पे
क्यूँ मैंने इस छोटे बच्चेवाले को रखा काम पे
हार कर मैंने  फुसलाया बच्ची को
पर चुप न हुयी वह
बस
मुंह फेर रोती रही वह
अबकी बार आँख से डरा के
घुड़क लगायी मैंने उसे
डर के मारे
चुप हो गयी वह बच्ची
मैं खुश हुयी
कम से कम बीमार तो न होगी बच्ची
ऐसे रो रो के
मजदूर को देख मैं मुस्कायी
मानो कहा मैंने
देखो मैंने चुप करा दी तेरी बिटिया
और
अबकी मजदूर ने समझाया बिटिया को ........
कान्दिब नाहीं गला काटी देब से |

मैं चकित रह गयी
सुन मजदूर की अपनी बिटिया को धमकाने की भाषा को |



अब क्या हुआ ?


26 August 2014
11:57
-इंदु बाला सिंह

हमारा तो कैरियर फिक्सड है
हम तो बस डिग्री लेने आये हैं
तू अपनी चिंता कर
कह कर उलझ पड़ा
अपनी छोटी बहन से
एक ही विद्यालय में पढनेवाला भाई
बहन ने की शिकायत शिक्षक से
और हुई
भाई की धुनाई |
घर लौट कर कहा भाई ..
अच्छा चल
कोई बात नहीं
हम दोस्त हैं
तेरा कैरियर फिक्स्ड है
और
मैं अपनी चिंता करूंगा
सुनते ही फिर दौडाई भाई को बहना
कलम पटक परेशान भाई बोला ....
अब क्या हुआ ?



अद्भुत अनुभूति


17 August 2014
14:46

-इंदु बाला सिंह

अद्भुत अनुभूति  है
यूं लगता है
सीढ़ी के एक पावदान पर खड़े हैं हम
बस सीढ़ी ही चलती जा रही  है  .......
अगल बगल से
शहर गुजर रहे हैं
पर 
उतरने के लिये
प्लेटफार्म ही नहीं आया अब तक |

शुक्रवार, 5 सितंबर 2014

चिट्ठी

    
26 August 2014
15:35
-इंदु बाला सिंह


चिट्ठी आई थी 
ननदरानी की उसके नाम ......
रात को दस बजे मेरी ट्रेन गुजरेगी तुम्हारे शहर से
मिलने की इच्छा है
मेरी और तुम्हारे ननदोई जी की तुमसे ........
न चाहते हुये भी
न जाने किस आस में 
भाभी खड़ी रही अपने पिता संग स्टेशन में
ट्रेन आयी
पर सभी खिडकियों के शटर बंद रहे
इक्के दुक्के रेलयात्री चढ़ते और उतरते दिखे
पर न दिखी ननद
और
ट्रेन चल पड़ी अपमानित भाभी को स्टेशन पे खड़ी छोड़ के |
अपने पिता संग लौटी एक बेटी अपने मैके
एक अफसर से हार के 
दिन तारीख तो मिट गये
स्मृति पटल से
पर
अंधियारी रातों में कौंधते रहे 
उस बेटी की आँखों में
स्टेशन के वे पल
क्योंकि
कुछ दिनों बाद
अपनी बहन की स्टेशनवाली अफसरी सुन
अभावग्रस्त भैय्या भी
मौन रह गये थे |


शहर बंद - 1


26 August 2014
13:23

आज शहर बंद है
मम्मी के सिर में दर्द है
घर में हुड़दंग है |

याद आयी नानी



26 August 2014
14:12

-इंदु बाला सिंह 

चल बंद बंद खेलें 
आज हमारा होमवर्क बंद 
मैं शिक्षक तू छात्र 
और
हो गयी लड़ाई
भाई बहन में
क्योंकि
कोई छात्र न बनना चाहा
आखिर बहन ने किया समस्या का समाधान
शुरू हुआ टेलीविजन का
संसदवाला खेल
भाई बना पक्ष
और बहन बनी विपक्ष
मुद्दा था ...होमवर्क
इतना जोर का हंगामा हुआ घर में
कि
माँ दौड़ी आयी
शेरनी सी दहाड़ी ....
चलो दोनों अलग अलग कमरे में बैठो
और
बच्चों को याद आयी नानी 

शिक्षक ही ध्रुवतारा है


06 September 2014
07:16
-इंदु बाला सिंह

हृदय की ज्योति जगानेवाला
धरा को रौशन करनेवाला  
शिक्षक सा उर्जा पुंज न कोय
मानहानि न करना उसका
उमड़ पड़ेगा सागर
जब बिजली सा चमकेगा वह
बादल सा मन घुमड़ेगा
मन उसका
तब एक झोंका आयेगा
सुनामी का
और
हाथी ही बच पायेगा
गर पहाड़ रहा तो
शिक्षक ही तो तेरा सितारा है
तेरा
अपना प्यारा ध्रुवतारा है |

संस्कृत सर जी !


05 September 2014
12:22
-इंदु बाला सिंह

ओहो !
संस्कृत सर जी !
धोती कुर्तेवाले सर जी
याद में बसे हो तुम सर जी !
क्या क्या बोलते थे तुम
पर हम तो तुम्हारा धोती कुर्ता देखते थे
एक दिन तुम खड़ा कर दिये ....
बोलो तुम ' बालक ' शब्द का ' रूप ' .....
और शुरू हुआ रूप
बालक: , बालकौ , ......
बालक: , बाल्काभ्याम ....
आगे जितना रटे थे
सब भूल गये थे हम
और
पड़ी डांट
बताऊंगा तुम्हारे पिता को
और
मेरी सांस जहाँ की तहां रुक गयी
और आज भी रुकी हुयी है
पर इस समय
मुस्कान है चेहरे पर
और
मन में मिठास है स्कूल डेज की |

गुरुवार, 4 सितंबर 2014

हैप्पी टीचर'स डे


05 September 2014
08:00
-इंदु बाला सिंह

मैडम आपने मुझे
पिछली साल गाल पर जो थप्पड़ मारा था
वह आज भी याद है
टीचर' डे पर कार्ड और पेन उपहार में देते हुये
शर्मीली मुस्कान के साथ
दसवीं कक्षा के
अपने प्रिय छात्र के मुख से उद्गार सुन
उसे याद आया
वह पल
जब वह खुद ही चौंक गयी थी
आवेश में मार कर थप्पड़
उस शैतान छात्र को |

शिक्षक दिवस


04 September 2014
23:58
-इंदु बाला सिंह

वन्दन करूं
मैं प्रथम गुरु पिता को
द्वितीय गुरु समय को आज
जिसने मुझे चलना सिखाया समाज में
और
पहचानना सिखाया सम्बन्धों को |

इंटरनेट


03 September 2014
09:48
-इंदु बाला सिंह

अहा !
जी उठे हम
आज
खुश हुये हम
पा के अपने वर्चुअल मित्रों को |
इंटरनेट ने समझाया ...
देख मेरी जान !
तुझे मार के पुनर्जीवित करने की
क्षमता रखते हैं हम
तुम्हें अपनों से भी मिलवाने क्षमता रखते हैं हम
अब मिल भी लो न अपनों से
खोल के टीम वीयुअर
मुस्का के कहा इंटरनेट ने ...
तो 
हमने भी हंस के कहा ......

' थैंक यू भैय्या ' |

झूठ का धागा


03 September 2014
09:34
-इंदु बाला सिंह

कुछ आकृतियां
पहाड़ के बगल बैठ
धुनती रहती थीं पहाड़ की रुई
और
बनाती रहती थीं झूठ का धागा
उस धागे से
वे कपड़ा बुनती थीं
कभी कभार उस धागे को अपनी अपनी लटई में लपेट
उड़ाने लगतीं अपनी अपनी पतंग
ये निस्तेज आकृतियां
आज भी जीवित हैं
पहाड़ के सहारे |