#इन्दु_बाला_सिंह
मकान, कमरे, शहर सड़कें
सासें लेते हैं संबंधों में
संबंध तो गुजर गये
पर याद रहे वे
जहाँ हमने
जिया था उन्हें
उनकी मिठास को महसूसा था हमने
बार बार पुकरते हैं वे शहर
कमरों के दीवारों को एक बार छूने को जी करता है
उन दीवारों में मेरे अपनों का स्पर्श मौजूद है
मेरे संबंध अभी भी जीवित हैं
मैं दरवाज़ों , खिड़कियों को स्पर्श कर
अपनों की उपस्थति महसूस करना चाहती हूँ ……
वह मिट्टी के दीवार याद आती है
जिसमें गाड़े थे नानी ने
अपने सोने के सिक्के
खोद कर निकाले थे उसने
वे सिक्के
मेरी माँ को दिये थे उसने
बनवा लेना अपनी बेटी के लिये गहने
उसकी शादी में काम आयेंगे
बैंक, कोर्ट कचहरी क्या जाने औरत
काश छू पाती मैं उन दीवारों को
कभी नानी, चाची , भाभी , मामी ने छुआ था जिन्हें
उम्र के अंतिम पड़ाव में
भटक रहा है बचपन ।