रविवार, 29 दिसंबर 2024

मूल्यहीन है मातृसत्ता

 


#इन्दु_बाला_सिंह


कोई गिलवा शिकायत नहीं 


पितृ सत्ता की संवाहक होती हैं 


घर छोड़ कर भागनेवाली लड़कियां 


आख़िर वे किसी पुरुष को 


ख़ुद से बेहतर समझीं ..ताक़तवर समझीं 


पुरुषों की दुनियाँ में वे ख़ुद को कमजोर समझीं 


उन्होंने भगाया नहीं किसी लड़के को 


आख़िर में उन्होंने समझाया 


आज भी मातृसत्ता 


मूल्यहीन है ।



गुरुवार, 26 दिसंबर 2024

गणित


 

#इन्दु_बाला_सिंह


गांव में 


बिस्तर पर पड़े दादा ने 


पास फटकने न दिया मुझे 


पुण्य कमाने का साधन थी उनके बेटे का मैं 


बिस्तर पर पड़े बी मौखिक गणित का जोड़ घटाव करवाते थे 


अपने पोते का 


मेरे ताऊ के बेटे को 


अपने वंशधारी को 


आक्रोश जो जन्मा तो जन्मा 


गणित न भाया कभी मुझे 


पर 


न जाने कैसे 


मेरी प्यारी बिटिया बनी 


अध्यापिका गणित की


सदा उत्सुक रही वह गणित में रिसर्च करने को  ।



सोमवार, 23 दिसंबर 2024

ईश्वर और जीवन



#इन्दु_बाला_सिंह


नया कर पाने चाह 


कुछ सीखने के चाह 


प्रेरणा है 


आगे बढ़ने की 


जीने की 


हर इच्छा पूर्ति 


गिर कर उठ पाने का सामर्थ्य 


जीवन  बनाता है सुंदर 


मुसीबत में पड़े इंसान की सहायता करने पर 


हममें ईश्वर का एक अंश आ जाता है 


मंदिर में क्यूँ खोजूँ 


सुख ,  शांति और ईश्वर 


वह तो मुझे दुआ में उठे हाथ के विकीरण में दिखे ।



और वह नेता बन गयी



#इन्दु_बाला_सिंह


उसने 


पिता खोया बचपन में 


वह जूझती रही समाज से 


अपनी माँ की ख़ुशी के लिये


अपनी बहन की ख़ुशी के लिये


मान सम्मान के लिये


उसे लगा जन प्रतिनिधि बन कर अपनों का हक़ पा लेगी


और 


वह नेता बन गयी ।



धूप ! कहाँ हो तुम



#इन्दु_बाला_सिंह


कमरे से बाहर निकलो तो धूप नहीं मिलती है 


मुफ्त का विटामिन डी कैसे मिले 


बदन गर्म कपड़ो से ढँका है 


सामने तार पर सूखते कपड़े धूप विहीन हैं 


केवल हवा उनकी मित्र है 


वह उनका गीलापन दूर कर रही है 


बाहर पार्क कोहरे में डूबा है 


सड़कों पर वाहनों के जलती रोशनी मात्र दिख रही है 


हार कर मैं निकल पड़ी 


धूप के तलाश में 


कहीं तो मिलेगी 


दिसंबर महीना सस्ती और तरह तरह की सब्जियां खिलाता है


पर 


छुपा लेता है धूप । 




17/12/24

भाँति भाँति के बंदी



#इन्दु_बाला_सिंह


परेशान थी मैं 


घर में 


पर 


सारे जहाँ की ख़बरों से वाक़िफ़ थी 


आजाद जीवन से परिचित थी 


ख़बरें जेल के राजनीतिक कैदियों की यातनाएँ बता रहीं थी 


जेल उन्हें भूख और पिटाई से  तोड़ रही थी 


वे अपमान और बीमारी से  बिलबिला रहे थे ……


मैंने सोंचा 


मैं आजाद तो थी कम से कम कुछ पलों के लिये 


मुझे चाँद तारे तो दिखते थे 


उनमें बैठे मेरे पूर्वज मुझसे बातें करते थे 


मेरे सपनों में आकर वे मुझसे मिलते थे 


लोगों की निगाहों में मैं भरे पूरे परिवार की सदस्य थी 


पर 


सत्य तो मैं जानती थी 


घर में 


मैं अकेली थी 


मेरे साथ मेरे पूर्वज थे 


और 


मेरा आसमान था ।



घर में सुंदर कमाऊ सेविका की चाह


 


 #इन्दु_बाला_सिंह


वे भी क्या दिन थे 


जब गोरे चिट्टे युवा को काली पत्नी मिलती थी 


आये दिन पति को वह चार बातें सुनाती थी 


घर में पत्नी का साम्राज्य रहता था 


और 


घर में रहता था पति नाम का एक प्यारा सा व्यक्तिव 


आज पार्क में खेलते लड़के 


आपस में गालियाँ बक रहे हैं 


घर में वे दे रहे हैं अपनी माँ बहन को गंदी गंदी गालियाँ …


आज युवाओं को 


अर्धांगिनी नहीं पत्नी के रूप में  सेविका चाहिये 


ऐसी सेविका जो बाहर से कमा कर लाए 


घर में बच्चों की देख भाल करे 


उन्हें संस्कारवान बनाये 


और 


अपने आफिस की समस्याओं का ठीकरा वे उस पर फोड़ सकें 


आत्महत्या करे तो जिम्मेवार अपनी पत्नी को बनाये 


उसकी औलादें अपने पिता से सीख रहीं हैं 


जीने का तरीका ।



मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

लड़कियां फुटबॉल नहीं खेलतीं



#इन्दु_बाला_सिंह


दो साल के उम्र की लड़की 


पार्क में 


बालू में खेल रही है 


माँ 


अपने मोबाईल में व्यस्त है 


दो साल के बच्ची के खिलौनों में प्लास्टिक के किचेन के बर्तन हैं 


हर थोड़ी देर में बच्ची अपनी माँ को खेलने बुला रही है 


आये दिन दिखते हैं मुझे ऐसे दृश्य 


छोटे लड़के भी दिखते हैं 


वे फिसलन पर चढ़ते हैं 


झूला झूलते हैं 


रस्सी के जाल पर चढ़ने के चेष्टा करते हैं 


पाँच वर्ष के आसपास के होंगी तीन लड़कियॉं 


वे दौड़ रहीं हैं 


एक दूसरे को पकड़ने की चेष्टा कर रहीं हैं 


दो चार वर्षीय लड़कियां आयीं एक साथ 


मेरा मुँह देख कर हंस रहीं हैं 


अजूबा व्यवहार लगा मुझे 


वे फिर हंस रहीं हैं 


मेरी आँखे थोड़ी कड़ी हो गयीं 


क्या हुआ?


वे बोलीं -


हम लोग स्कूल में ऐसे ही करते हैं 


मैंने सोंचा -


लड़कियां फुटबॉल क्यों नहीं खेलतीं ।


#indubalasingh #hindipoetry

शनिवार, 7 दिसंबर 2024

भटकती शाम



#इन्दु_बाला_सिंह


मकान, कमरे, शहर सड़कें 


सासें लेते हैं संबंधों में 


संबंध तो गुजर गये 


पर याद रहे वे 


जहाँ हमने


जिया  था उन्हें 


उनकी मिठास को महसूसा था हमने 


बार बार पुकरते हैं वे शहर 

 


कमरों के दीवारों को एक बार छूने को जी करता है 


उन दीवारों में मेरे अपनों का स्पर्श मौजूद है 


मेरे संबंध अभी भी जीवित हैं 


मैं दरवाज़ों , खिड़कियों को स्पर्श कर 


अपनों की उपस्थति महसूस करना चाहती हूँ ……


वह मिट्टी के दीवार याद आती है 


जिसमें गाड़े थे नानी ने 


अपने सोने के सिक्के 


खोद कर निकाले थे उसने 


वे सिक्के 


मेरी माँ को दिये थे उसने 


बनवा लेना अपनी बेटी के लिये गहने 


उसकी शादी में काम आयेंगे 


बैंक, कोर्ट कचहरी क्या जाने औरत 


काश छू पाती मैं उन  दीवारों को 


कभी नानी, चाची , भाभी  , मामी ने छुआ था जिन्हें 


उम्र के अंतिम पड़ाव में


भटक रहा है बचपन ।



मंगलवार, 3 दिसंबर 2024

दुःख दिया ख़ुशी ने



#इन्दु_बाला_सिंह


सुख में खुश रही 


दुःख में भी खुश रहने का बहाना तलाशा मैंने 


और 


खुश रही 


खुश रहने की आदत ने जितना मुझे सुख दिया 


उससे ज़्यादा दुःख दिया 


जिन्हें मुझे रुलाने में आनंद आता था 


वे निकलते गये 


मेरी ज़िंदगी से 


अकेली हो गयी मैं 


संबंधों को जोड़ने की कोशिश में ।



चीता के दाँत



#इन्दु_बाला_सिंह


बिल्ली की तरह प्यारा चीता मुझे 


आज देखना है मुझे 


इसे 


प्यार से 


दूर से 


पास नहीं जाना है मुझे 


वरना 


यमराज के दरबार में पहुँच जाऊँगी 


काश मैं भरत होती 


बड़े आराम से चीता को सहलाती 


उसके दाँत गिनती ।



सोमवार, 2 दिसंबर 2024

दूर के रिश्ते



#इन्दु_बाला_सिंह


माँ, बाप हों या बेटे 


आँखों से ओझल हुये 


जो रिश्ते 


दुःखी न होना 


मिलने पर  उनसे 


किसी दिन आमने सामने 


लपक कर उनकी ख़ैरियत पूछना ।



बिछड़्न के ग़म



#इन्दु_बाला_सिंह


आओ बिटिया 


 जी  लें हम कुछ पल


संग संग


 इस भागम भाग जीवन के .…


ख़ुशियों के पल छप  जायेंगे 


हमारी मन की किताब में .…


अब की बिछड़े तो न जानें कब  मिलें 


लो बिछड़्न के ग़म 


 हम भूल चले ।



संबंधों की पुकार



#इन्दु_बाला_सिंह


आँखो में सपना है 


रिश्तों से महकते परिवार का 


ऐसा एक परिवार जो वर्ष में एक बार जुड़ जाये


अपनों के सुख दुःख से परिचित हो 


मिट्टी की महक  न छूटे 


अर्थ  और डिग्री को परे रख ख़ाली अपनत्व की नदी के किनारे बैठें हम 


प्रकृति की आर्द्रता महसूसें 


दिन भर चुहल करें 


हमारे बच्चे हमसे सहिष्णुता  सीखें 


पुरानिया के गुजरने का दुःख महासूसें 


नये के आगमन का आनंद मनायें 


जब तक चेतना है 


तब तक चेष्टा है … स्वप्न को सत्य करने का ।



मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

उम्रदार बच्चा



#इन्दु_बाला_सिंह


दादी कहती थी 


देख मैं पानी में डुबो रोटी खाती हूँ 


मैं मुँह बिदोरती थी ……


आज 


अपनी दादी से ज़्यादा उमर की हूँ 


रोटी को पानी में डुबोने की ज़रूरत नहीं मुझे 


सूखी रोटी ही मीठी लगती है


बिस्कुट से ज़्यादा भाती है मुझे यह रोटी ।


24/10/24



प्रगति हो रही है



#इन्दु_बाला_सिंह


जंगलों को शहर निगल रहे हैं 


और 


शहर को महानगर 


इंसान को सुविधा दे रही है स्मार्ट सिटी 


पर्यावरण तो राजनीतिक मुद्दे हैं 


हम ए० सी० रूम , कार , ऑफिस , मॉल में  निश्चिंत है 


हमारी संवाद हीनता बढ़ रही है 


गाँव ख़ाली हो रहे हैं 


रिश्तों की गर्माहट तलाशता मन भटक रहा है 


संयुक्त परिवार छोटा परिवार बन गया  


एकल परिवार का जादू


 तो 


सर पर चढ़ रहा है 


हम प्रगति के कर रहे हैं ।


22/10/24



देर में समझ आई



#इन्दु_बाला_सिंह


लिंगभेद मिटाते मिटाते 


बड़ी देर में 


समझ आई ……


लड़की मतलब बच्चेदानी और सेविका 


इन्हीं दो गुणों के सहारे निकलती है हंसते रोते 


 उसकी ज़िंदगी .…


बाक़ी सब राजनीति है 


क़िस्मत है 


पिता की समझदारी है ।


23/10/24



ये मेरी देहरी है



#इन्दु_बाला_सिंह


जहां भी रहूँगी 


आऊँगी मैं दीया रखने 


अपनी देहरी पर 


तू नहीं रोक सकता मुझे 


ये मेरी नींव है 


इस नींव में मेरी  आत्मा बसती है 


सदा बारूँगी दीया मैं


न भी रही 


तो 


सदा बरूँगी मैं दीया बन अपनी देहरी पर 


तृप्त होने पर ही  जाऊँगी


 मैं 


अपनी देहरी से ।


21/10/24


पिता की असहायता



#इन्दु_बाला_सिंह


पेशाबदानी दे दे बेटा 


नंग धड़धड़ंग पिता ने मनुहार की थी 


नहीं तो पेशाब बिस्तर पर हो जायेगा 


आ कर तुम्हारा भाई ग़ुस्सा करेगा 


पीठ में घाव था 


शरीर असक्त था 


वे उठ नहीं पा रहे थे 


बेटी माँ बन गयी थी इस पल


पर 


बेटा पिता नहीं बन पाया था 


बेटी ने पेशबदानी पिता को पकड़ा दी 


रात भर सोते नहीं थे पिता 


चादर को चुन्नट करते रहते थे 


बेटी दुःखी रहती थी 


अपने आजीवन सहारा रहे पिता के अंतिम महीनों की असहायता देख कर 


वह तो स्वयं पिता पर  मानसिक तौर पर निर्भर थी 


राशन मँगवाना से ले कर 


बिजली बिल भरवाना 


होल्डिंग टैक्स देना 


बिस्तर पर लेटे पिता 


अपनी आँखों के सामने करवाते थे पिता 


उस दिन बेटे को चिंघाड़ कर आवाज़ लगाये पिता अस्पताल के बेड पर 


बेटा पास न था 


पास में था केवल अटेंडेंट 


 एक हिचकी आई 


खून का थक्का निकला 


और प्राण भी निकला ।


18/10/24



मौतें



#इन्दु_बाला_सिंह


आठ साल की उम्र में 


छः महीने की बहन गुजर गयी डिप्थीरिया से 


पति गुजर गये 


हार्ट अटैक से 


पिता गुजर गये 


बीमारी से 


माँ गुजर गयी 


बुढ़ापे और अकेलेपन के दुःख से 


ससुर गुजरे कैंसर से 


सास गुजरी 


हार्ट अटैक से 


कभी न  रोयी वह 


मुझे ख़ुद पर आश्चर्य होता है 


बस 


हर मौत पर  


एक ख़ालीपन और भय सिमट जाता था उसमें 


लगता था मूरत बन गयी है वह 


आज सोंचती हूँ 


ऐसी क्यों थी वह ?


पर रोयी थी वह 


एक बार 


जिस दिन उसकी बेटी 


उसे बिना बताये घर छोड़ कर चली गयी थी 


अपने पुरुष मित्र के साथ   ।


18/10/24



स्वस्थ लड़की

 #part_2_poem



#इन्दु_बाला_सिंह


मातृत्व के नाम पे


सतीत्व के नाम पे 


बलात्कार के नाम पे 


डरना मना है 


जिस दिन कर्म को धर्म समझेगी लड़की 


उस दिन वह मानसिक रूप से 


आज़ाद हो जायेगी 


स्वस्थ हो जायेगी 


और 


समाज स्वस्थ होगा ।


17/10/24



सोमवार, 14 अक्टूबर 2024

मेरे पिता



#इन्दु_बाला_सिंह


मेरे पिता गये नहीं 


बस  गये हैं  मुझमें 


हर थोड़ी देर बाद मैं बातें करती हूँ उनसे 


पूछती हूँ उनसे ढेर सारे प्रश्न 


पर वे चुप रहते हैं 


कभी कभी वे  मेरे सपने में आते हैं 


मेरी समस्याओं का समाधान करते हैं 


लोग यूँ ही कहते हैं - 


इसका  पिता गुजर गया है 


अब नहीं लौटेगा ।


14/10/24



अजीब माँ



#इन्दु_बाला_सिंह


ग़ज़ब की माँ थी वह 


उसके अंदर लाड़ , स्नेह नहीं था 


वह 


ख़ूँख़ार थी


कठोर थी 


अपने बच्चों के लिये वह सुरक्षा घेरा थी 


उसने 


कभी नहीं निकलने दिया उस घेरा के बाहर 


अपनी औलादों को


उन्हें बाहर की कहानियाँ भी न सुनाई 


वह नहीं चाहती थी 


बाहर की  वीभत्स सच्चाई से परिचित हों इसके बच्चे


बचपन की मासूमियत खोने से  सपने टूट जाते हैं  


बच्चे बड़े हुये


और नाखुश हुये अपनी माँ से 


सब की माँ 


करुणा की सागर थी 


स्नेहिल थी 


अजीब औरत थी उनकी माँ  ।


13/10/24



गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

नानी की जीवन संध्या



#इन्दु_बाला_सिंह


नानी मुश्किल से चल फिर पाती थी 


नौकरानी  ख़ाना पका के खिला कर चली जाती थी 


नर्स का काम था नहलाना धुलाना नानी को 


बाक़ी समय बग़ल के बिस्तर पर बैठ कर अपने कॉलेज की पढ़ाई करती थी वह


नर्स की उपस्थिति नानी का अकेलापन दूर करती थी 


किसी कारण वश नर्स कमरे से बाहर चली जाती 


तो 


नानी अपने गाँव का शादी का गीत गाने लगती थी 


गीत सुन कर मेरे मन में प्रश्न उठता  था 


आख़िर नानी क्या सोंचती होगी ?


कभी कभी तो वो सोहर भी गाती थी 


मैं सोंचती -


बेटा सागर पार है 


और 


सोहर गाते समय नानी के मन में क्या भाव आते होंगे ?


लोक गीत हमें अपने काल में खींच ले जाता है 


नानी का गाना मुझे मौन रुदन सा महसूस होता था 


जीवन संध्या भी अजीब होती है ।


10/10/24



बेटी ही घर है



#इन्दु_बाला_सिंह


जीवन की भागदौड़ में 


बेटियाँ 


ठहराव होती हैं 


बरगद की छाँव होती हैं 


उनकी आँखों में हमें  नया समय दिखता है 


आशा दिखती है 


कल्पना की उड़ान दिखती है ……


पारियों की परिकथाओं सी होती हैं बेटियाँ 


बहन सी श्रद्धा और माँ सी असीस होती हैं बेटियाँ 


बेटी का अपमान


ख़ुद का आत्महन्त है 


बिन बेटी घर सूना । 


11/10/24



बुधवार, 9 अक्टूबर 2024

पिता की तलाश

 


#इन्दु_बाला_सिंह


बचपन में पिता खोई बच्ची ने माँ का संघर्ष देखा 


माँ की  बीमारी में उसका अकेलापन देखा 


सबकी माँ के दुःख के पल में पिता खड़े रहते हैं सहारा बन कर 


पर 


इस छोटी बच्ची को ख़ुद अपनी माँ का सहारा बनना पड़ा 


माँ और बेटी दोनों एक दूसरे के सहायक थे 


लड़की को कसरत करते समय राजनीतिक मित्रों का सहारा लेना पड़ा 


पिता तो पिता होता है 


पिता तलाशती है लड़की विभिन्न पुरुषों में 


कभी कभी वह आजीवन पिता तलाशती रह जाती है ।


08/10/24



प्रश्न करो

#part_2_poem




#इन्दु_बाला_सिंह


कब तक और कितनी औरतें मौन रहेंगी 


परिवार की सुख सुविधा के लिये मिटती जातीं हैं 


एक पीढ़ी के पीछे दूसरी पीढ़ी संस्कार के नाम पर 


रिश्तों की तंग गलियों में घुटती हैं 


कभी सुरक्षा के नाम पर मौन की जातीं हैं 


तो कभी परिवार की इज्जत के नाम पे 


पिता हक़ दो बेटी का 


बेटी को शक्ति दो 


उसे प्रश्न पूछने लायक़ बनाओ 


जिससे वह आजीवन 


सवाल करना न छोड़े


ओ औरत !


तुम्हारे सवाल तुम्हारी आजादी की नींव हैं 


तुम अपने सामनेवाले को आईना दिखा सकती हो 


देश आज़ाद सवालों से हुआ 


अपने हक़ के लिये सभी प्रश्न उठाये और लड़े 


लड़ो लड़कियों लड़ो 


ओरतो लड़ो 


अपनी अस्मिता के लिये नागरिक अधिकार के लिये लड़ो ।


09/10/24



सोमवार, 7 अक्टूबर 2024

बेकारी हटाना था



 


#इन्दु_बाला_सिंह


बेकारी बढ़ गयी थी 


हर वर्ग में आक्रोश था 


नेताओं  को कुछ करना था 


उन्हें अपने पद की चिंता थी 


मुनादी हुयी -


सत्यवादी अल्पसंख्यक हो गये हैं 


उनके लिये दस प्रतिशत कोटे की व्यवस्था की गयी है ।


सभी अपने अपने को सत्यवादी कहने लगे 


सत्यवादिता के  सर्टिफिकेट पर कलक्टर मुहर लगाने का जिम्मा सौंपा  गया 


कलक्टर सरकारी अधिकारी था 


वैसे जज को भी पावर दिया गया था सर्टिफिकेट पर मुहर लगाने का 


लंबी लाइन लगने लगी 


सत्यवादिता के सर्टिफिकेट बनवाने  के लिये


नौकरी का आरक्षण प्रलोभनकारी था 


धर्म , जाति और महिलाओं का आरक्षण ख़त्म हो चुका था 


सरकारी नौकरी घट गयी थी 


ऐसे में सत्यवादिता का आरक्षण बड़े  काम की चीज थी 


आम जनता को शांत करने के लिये 


अब लोग नारे लगाना भूल गये ।



रविवार, 6 अक्टूबर 2024

महादलित



#इन्दु_बाला_सिंह


वृद्धाश्रम में हैं औरतें 


वे अकेली कैसे रहें 


मर्द होता 


तो रह ही लेता अकेला 


अपने घर में भी डर है औरतों को 


बेटी के जन्मते ही 


उसके भविष्य की चिंता करने लगते हैं पिता 


बेटी से घर है 


पर 


बेटी सुरक्षित नहीं 


कितना भी पढ़ लिख ले बेटी 


सुरक्षा सदा एक मुद्दा रहा है पिता के लिये 


ब्याह कर बेटी का 


उसे  सुरक्षित घर में पहुँचाते है वे 


आगे भवितव्यता पर निर्भर है 


देह व्यापार में तृप्त करतीं हैं बहुतों को औरतें 


अरे!


औरतें सरकारी पदों पर हैं 


कॉर्पोरेट सेक्टर में हैं 


स्पेस में जा रही हैं 


पर्वतारोहण कर रही हैं ….…


कितनी प्रतिष्ठित पदों पर हैं वे 


पूजी जातीं है वे नवरात्रि में 


फिर 


कैसे लोग कहते हैं -


दलितों में महा दलित हैं महिलायें 


घरों की खिड़कियों से अंदर झांकने का दम भला कैसे हो ।



शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

पेंशनहीन



#इन्दु_बाला_सिंह


सतत भाग्य से लड़ते रहे 


समय कटता रहा  


अस्तित्व की लड़ाई जारी रही 


गुमनाम ही रह गये 


बुद्धिहीन कहलाते रहे 


सकून की तलाश में भटकते रहे 


घर ही न था 


तो चिराग़ भी न बन सके 


चौहत्तर के हो गये 


बस पेंशनहीन जीवन जीते रहे 


भटकते रहे हम ।



कुलांगार



#इन्दु_बाला_सिंह


ऊँची जाति 


ऊँची डिग्री 


एकाएक धन का आगमन 


जन्माता है अहंकार 


इंसान में 


आसपास के लोग उसे कीड़े मकोड़े लगने लगते हैं 


एक निरंकुशता सी जन्म लेने लगती है 


उस के मन में 


धीरे धीरे 


उसका पतन शुरू होने लगता है .…


कभी कभी   कुलांगार भी जन्म ले लेता है


किसी  सौम्य उच्च वर्ग परिवार में ।



सोमवार, 30 सितंबर 2024

स्कूली बच्चा



#इन्दु_बाला_सिंह


बलि दी गयी


गाँव के  स्कूल में पढ़नेवाले  छः वर्षीय बच्चे की 


अख़बार में छपी थी खबर 


बलि थी 


या 


कुछ और था 


न जाने क्या था 


ग़रीबी अभिशाप थी शायद 


आज भी बच्चे के खून से हाथ रेंगनेवाला 


न जाने कैसा हैवान है 


न जाने किस समाज का विकार है ।



शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

भूख


#इन्दु_बाला_सिंह


शारीरिक हो या मानसिक 


या 


हो पेट की 


भूख कुत्ता ही है 


उसे थोड़ा रोटी का टुकड़ा दे  देना 


वरना 


वह सत्ता हिला देगी 


आसपास की जगह तहस नहस कर देगी ।



पेंशन



#इन्दु_बाला_सिंह


वह 


बकइयाँ खींचते हुये 


पोस्ट ऑफिस पहुँची थी पेंशन लेने के लिये 


न जाने किसने उसकी तस्वीर ले ली 


और 


अब वह मीडिया पर दिखने लगी 


गाँव में


उसे लोग बदनाम करने लगे 


बुढ़िया लालची है 


बेटा मज़दूरी करता है शहर में 


उसको खाने की कमी है 


अरे ! 


वो अपनी बिटिया को देने के लिये पेंशन लेती है .……


अभी तो 


कुछ माह बाद  उसे 


अपना  जीवित होने का प्रमाण पत्र लेने के लिये 


पोस्ट ऑफिस जाना था 


परेशान थी 


वह अपंग ।



27/09/24

गुरुवार, 26 सितंबर 2024

उस दिन

 


#इन्दु_बाला_सिंह


बातें कर रहे थे 


वे 


राम का वनवास का काव्य है  बंदे मातरम् 


और 


मैंने कहा था 


सीता के वनवास का काव्य है बंदे मातरम् 


सब चुप रह गये थे 


न जाने क्यूँ ।



काम हो गया था



#इन्दु_बाला_सिंह 


एक दिन 


पूछा मैंने 


उस होम मेकर से - 


संविधान के बारे में सुना है ...


वह मूर्खों की तरह मेरा मुंह देखने लगी


हां...


पंद्रह साल पहले सुना था यह शब्द स्कूल डेज में 


पर अब सोचती हूं 


हाथ से लिख कर लटका लूं 


अपनी दीवाल पर कैलेंडर की तरह 


कुछ तो याद रहेगा ....


मेरा काम हो गया था 


मैं  हट गई उसके पास से ।



अकेलापन

 


#इन्दु_बाला_सिंह


पूछा मैंने जगदम्बे से -


तुम मेरी दोस्त बनोगी 


वह हंस कर बोली -


मैं तो संसार से दूर ऊँचे पहाड़ की वासी 


सबकी माँ हूँ


कैसे बनूँ तुम्हारी दोस्त .…


मैंने भी जिद पकड़ी-


तुम बन सकती हो मेरी दोस्त 


तुम आ सकती हो मेरी दोस्त बनकर ……


और मेरी नींद खुल गयी 


मैं हैरत में थी 


अपने सुबह के स्वप्न पर ।



बुधवार, 25 सितंबर 2024

जल रही है मशाल





#इन्दु_बाला_सिंह


भक्क से जल उठी थी चिंगारी 


सात वर्ष की ही उम्र में 


जिस पल मेरी माँ को कहा था 


मेरी ताई ने -


तुम्हारे तो केवल बेटी ही है 


मेरे बेटे को अपना बेटा समझो ……


माँ चुप रही 


दुःखी भी ज़रूर हुई थी होगी वह 


उसके भाई के खानदान में एक भी बेटा न था 


समय के साथ मन के झाड़ में लगी चिंगारी मशाल बन गयी 


और 


आज जीवन के उत्तरार्ध काल  में भी 


जल रही वही मशाल ।



लायक़ बेटा





#इन्दु_बाला_सिंह


दुपहरिया से बादल दुःखी है आंसू बरसा रहा है 


न जाने क्यूँ 


पार्क में पैदल चलने का मौसम नहीं है 


पर 


इंसान मौसम से भी लोहा ले लेता है 


पार्क के मैदान कुछ औरतें ख़ाना बना रहीं हैं 


कुछ मर्द उनके लिए प्लास्टिक की चादर बांध रहे हैं 


चूल्हा सुगमता से जलना है 


ख़ाना भी तो बनाना है 


ज्युतिया के लिये प्रसाद बन रहा है 


बेटे की सलामती का पूजन है 


बेटा सलामत है 


तो 


पति खुश है 


पति खुश है तो घर है 


औरतों पर देवी देवता पूजन का भार टीका है 


ज्युतिया के दिन बेटियों के दिल में क्या है 


बिन बेटों की माँ के  दिल में क्या है 


यह क्यूँ सोंचा जाय


बेटा विदेश बस जाये 


तो 


पूजन व्यर्थ गया 


माँ - बाप के अंतिम पल में 


गंगा जल नौकर डाले 


यही सत्य है 


लायक बेटे का ।



सोमवार, 23 सितंबर 2024

अतीत देखते हुये





#इन्दु_बाला_सिंह 


अतीत को पढ़ कर ही हम गढ़ते हैं भविष्य 


और 


रचते हैं अपना वर्तमान


अपना सुघड़ समाज 


आज हम लौट रहे हैं पूर्वजों की सभ्यता को समझने 


हमारी माया सभ्यता का सूर्य ग्रहण का गणन 


हमें अचंभे में डाल देता है 


जीवन संध्या हमें याद दिलाती है 


हमारे अतीत की ......


अतीत से भागती नयी पौध 


जड़ों से दूर 


नकली सूर्य की चकाचौंध से सम्मोहित हो 


भागती ही रह जाती है


वर्तमान उसका उसे एक दिन थका ही देता है


केवल पैसा


और 


अपने जीवन का अफसोस ही रहता है 


उसकी मुट्ठी में 


अपनी आनेवाली पीढ़ी को थमाने के लिये ।



अख़बार भी न बोला




#इन्दु_बाला_सिंह


बच्ची स्कूल नहीं पहुँची 


स्कूल में शिक्षक मौन थे 


प्रिंसिपल मौन थे 


बच्चे आपस में एक दूसरे से बतिया रहे थे 


उस बच्ची को क्या हुआ था पता नहीं किसीको


माँ ने कह दिया रिक्शावाले से -


कल से मत आना बच्ची को लेने … वो अब नहीं है ……


खबर फैली पर 


किसी की ज़ुबान पर न आयी 


अख़बार भी न बोला ।



रविवार, 22 सितंबर 2024

?

घरेलु व्यवस्था



#इन्दु_बाला_सिंह


सौंप देते हैं अपने सपने 


कुछ पिता 


अपनी बेटी को …


बेटी  शक्ति और बुद्धि के शौर्य से चमक उठती है 


वह समाज में प्रतिष्ठा पाती है 


फिर भी


 घरों में दोयम दर्जा मिलता है उसी बेटी को 


आख़िर क्यों ?


जिस दिन चेतेंगी लड़कियाँ 


उसी दिन से 


घरेलू व्यवस्था का चरमराना शुरू हो जायेगा।




04/08/24

ठंडी उदास हवा



#इन्दु_बाला_सिंह


 ब्याह के बाद 


धीरे सीख रही है  युवती  


दूसरे घर का चाल ढाल 


और


भुला रही है अपने बचपन के गुण 


जीने के लिये 


वह दूसरे  के साँचे में ढल रही है 


युवती की प्रतिभा को मान न मिला 


दोनों परिवार एक दूसरे से कुछ न सीखे 


लड़की अपने शौक़ खो रही है 


दरवाज़े ख़ामोश हैं 


नया जीव जन्म ले रहा है 


धीरे धीरे 


नयी पौध कुम्हला रही है 


उदास धूप में 


ठंडी हवाओं में ।




04/08/24

दान



#इन्दु_बाला_सिंह


वे आतुर थे 


दान देने के लिये 


उन्हें अपना भविष्य सुधारना था 


और 


मुझे दान ले कर 


दीन हीन न बनना था ।




03/08/24

मकान



#इन्दु_बाला_सिंह


मुझे माँ के  मकान की ज़रूरत थी 


और 


माँ को मेरी 


माँ की आँख बंद होते ही 


वक्त पलटा 


सबकी गिद्ध दृष्टि मकान पर लग गयी


दरवाज़े , दीवार निरीह से ताकते रहे   ।




02/08/24

दरवाज़ा बंद है ।



#इन्दु_बाला_सिंह


साँकल न खटखटाना 


दिल का दरवाज़ा बंद कर दिया है मैंने 


संबंधों के दरबाजे खुले हैं 


बेखटके अंदर आ जाना .……


दुश्मनी के दरवाज़े पर ताला मार दिया है मैंने 


और 


चाभी समंदर में फेंक दी है ।



पितृहीन लड़की



#इन्दु_बाला_सिंह


अपना भविष्य ख़ुद बनाओ 


कहा था मैंने 


एक पितृहीन बिटिया को 


उसने किसी से कुछ न सीखा 


उच्च शिक्षित हो अपने पैरों पर खड़ा होना न चाहा 


आर्थिक स्वांबलबिता का महत्व न समझा 


उसने अपने लिये दूल्हा तलाशा 


और 


होम मेकर बन गयी ।



ख़ाना - घर से दूर



#इन्दु_बाला_सिंह


बिहारी मज़दूर काम से लौट के 


हीटर पर 


उबालते हैं आलू चोखा बनाने के लिये 


और 


बेलते हैं रोटी


खा के रोटी चोखा 


सो जाते हैं वे लंबी तान के ……


पर पढ़े लिखे बिहारी नौजवान को न भाता 


आलू उबालना 


रोटी बेलना 


वे होटल से ख़ाना मंगा कर खाते हैं ।



पार्क में जुगाली

 


#इन्दु_बाला_सिंह


रिमझिम पड़ रही हैं फुहारें 


पार्क में बैठी हूँ 


बच्चे घर में बंद हैं 


आवारा कुत्ते घूम रहे हैं 


वे आज आज़ाद हैं 


वे ही कर रहे हैं मेरा मनोरंजन 


सूने घर और उसकी परेशान दीवारों से ऊबी मैं 


पार्क के एक छाँव में 


हूँ बैठी .…


कुत्ते मेरे बग़ल से गुजर जाते हैं 


भौंकते नहीं मुझ पर 


शायद वे मुझे पहचानते हैं


किसी कैविटी  में वे अपनी पहचान डाल देते हैं 


नीचे तल्ले की रसोई सूंघते 


वे गुजर जाते हैं 


बेकार इंसान  भी इसी तरह विभिन्न घर की  रसोइयों की ख़ुशबू लेते गुजरता 


तो 


वो क्या सोचता …


मैं 


सोंच नहीं पाती हूँ ……


बरसात न हो तो छोटे बच्चे दिख जाते हैं 


पार्क के बालू में 


घरौंदे बनाते 


एक दूसरे को दौड़ाते


कुछ समझदार बच्चे 


मुझसे समय का ज्ञान पाने के लिये 


पूछ लेते हैं मुझसे 


मेरी घड़ी का टाइम ….…


छोटे बच्चे न रहें 


कुत्ते न रहें 


तो पार्क उदास हो जाता है 


दिमाग़ में  


जुगाली करने को मुझे 


पार्क में 


मुद्दा नहीं मिलता  है ।



गर्मी





#इन्दु_बाला_सिंह


बह गया आँखों से जो 


वो जज्बात कैसा 


गिर गया आँखों से 


वो इंसान कैसा 


बाक़ी सब तो 


कुछ पल का समझौता है 


पानी का बुलबुला है इंसान 


फिर अहंकार कैसा 


वह गर्मी कैसी 


जो न तो अपने काम आयी और न ही किसी ज़रूरतमंद के ।


#indubalasingh #hindipoetry

असुविधापूर्ण जीवन जीते लोगों के लिये



#इन्दु_बाला_सिंह


हम तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर तुम्हारी भाषा में देते हैं 


तुम ख़ुश हो जाते हो 


तुम्हारा मन नहीं किया 


मेरी ही तरह मेरी भाषा सीखने का !


हम तो तुम्हारा ज्ञान प्राप्त कर आगे बढ़ जाते हैं 


तुम अपनी भाषा के मद में डूबे जहां के तहाँ रह जाते हो 


हम तुम्हें बदलते नहीं हैं 


तुमसे तुम्हारी  अच्छाइयाँ ग्रहण करते हैं 


ख़ुद की ग़लतियों का शोधन करते हैं ….…


हम आगे बढ़ते जाते हैं 


तुम अपने संस्कार के नाम पर आगे बढ़ना ही नहीं चाहते 


जल , जंगल ज़मीन हमें भी प्यारी है 


तभी तो हम संरक्षित करते हैं बनों को 


नदियों को साफ़ रखने की कोशिश करते हैं


गाँवों को बिजली और इंटरनेट से जोड़ते हैं 


वर्क फ्रॉम होम का कल कल्चर बढ़ा रहे हैं 


हम तुम्हारा शोषण नहीं कर रहे हैं ।



कन्यादान



#इन्दु_बाला_सिंह


हँसी ख़ुशी दान हो जाती हैं लड़कियाँ 


 कम पढ़ी लिखी हो या उच्च शिक्षा प्राप्त हो 


एक खूबसूरत नये संसार की कल्पना लिये 


परंपरा के नाम पर ……


काश वे सोंच पातीं 


वे वस्तु नहीं हैं जिन्हें दान किया जा रहा है ।



लंबी आयु का दुःख





#इन्दु_बाला_सिंह


एक कोने में पड़ी अकेली बूढ़ी औरत शादी के गीत गाती है 


अपनी युवावस्था के विवाह रस्मों को याद करती है 


फिर 


विव्ह्वल हो  पुकार उठती है 


ओ माँ !


बेटे आ कर देख जाते हैं माँ को 


लोक लाज के चलते 


यह वही औरत है 


जिसने  अपनी जवानी में बेटे बेटी के दुःख दूर किये 


आज पड़ी है वह 


बिस्तर पर 


कभी बाथरूम में गिर जाती है 


तो कोई उसे उठा देता है आ कर 


बुढ़ौती रिश्तों की 


महक ढूँढती है 


सहारा ढूँढती है 


प्यार ढूँढती है 


सम्मान ढूढ़ती है ……


आख़िर इतनी आयु क्यों जीता है इंसान ?



कृतियों का जन्म





#इन्दु_बाला_सिंह


इंसान में 


विचार और भावनायें एक साथ चलते रहते हैं 


कभी कभी भावनाओं का वेग तीव्र हो जाता है 


पहाड़ फोड़ कर निकल पड़तीं है शब्दों के झरने सरीखी 


कविता का जन्म होता है  


स्थिर भावनायें रिसतीं रहतीं  हैं 


शब्दों का जलकुंड बनता है उपन्यास का जन्म होता है 


भावनाओं के हल्के फुलके शाब्दिक उफान कथा कहानी के रूप ले 


बस जाते हैं ……


सोंच विचार कर किया गया भावनायुक्त 


परीक्षण वैज्ञानिक लेख …विश्लेषण राजनीतिक लेख के रूप में जन्म लेता है ।



मनहूस है फ्लैट





#इन्दु_बाला_सिंह 


न तो सूर्योदय दिखे


न सूर्यास्त 


चिड़िया कौओं के भी दर्शन न हों


बस दीवाल हैं


और 


है इंटरनेट 


अकेलेपन का विस्तार है 


मनहुसियत की शरण स्थली है फ्लैट।



पिता खो गये





#इन्दु_बाला_सिंह


ग़र पिता बेटी के मित्र होते


 तो 


कहानी कुछ और होती 


अपनी सारी शक्ति और वैभव दान न करते 


वे 


अपने पुत्र को 


और 


बेटी को सदा दान किया हुआ पात्र न समझते 


कहानी वही है 


चेहरे नये हैं ।



मकान के छूटने पर



 


#इन्दु_बाला_सिंह


मकान में 


वह आख़िरी रात थी हमारी


हमारे घर की 


और 


हम अपने अपने दुःख को छिपाते हुये 


एक दूसरे की ओर पीठ कर के


टूटना नहीं है 


इस भाव के साथ ज़मीन पर सोये रहे 


मन कह रहा था 


यह आख़िरी रात है 


घर की 


नींद खुली तो 


नया दिन था 


नया सूरज था 


नया निर्णय था 


हम अपने अपने रास्ते की ओर  बढ़ चले ……


हम 


मिलते रहे 


बिछड़ते रहे 


बहुत कुछ छूट गया .……


मेरा पूर्वाभास सच हुआ 


समय जीवित रहने के लिये बदलाव  माँगता है 


और 


हम बदलते रहे 


जीवित रहे ।



शनिवार, 21 सितंबर 2024

ग्लोबल इंसान

#इन्दु_बाला_सिंह


अब ग्लोबल बनने की ओर चले 


छूटा कब  पता नहीं अपना गाँव 


और अपने लोग बिसर गये 


जड़ से कट कर हम आज कितने अकेले हो रहे 


उबर , स्विग्गी, बिगबास्केट , एलेक्सा हमारे मित्र हैं 


नदियों से हम मुँह मोड़ चले 


क्रेच और  वृद्धाश्रम के सहारे हम आगे बढ़े 


अपने जन्मदाता की छाँव  छोड़


धर्म की छाँव में सुस्ताने लगे अब हम ।



शुक्रवार, 20 सितंबर 2024

पंडिता बनूँगी




#इन्दु_बाला_सिंह


अग्नि परीक्षा न दूँ


आँख पर पट्टी न बांधूँ


मैं तो बनूँगी 


पंडिता रमा बाई ……


शक्ति हूँ 


बदलूँगी निकटस्थों के भाग्य ।



सोमवार, 16 सितंबर 2024

सूर्य जगा

- इन्दु बाला सिंह 


सबने अलग अलग घर बसा लिया 


शून्य मूल्यहीन था 


वह भटकता रहा भूखा प्यासा 


एक दिन दौड़े आये उसके भाई बहन 


पहले एक पहुँचा 


बैठ गया शून्य के बाँये 


फिर एक एक कर के आते गये 


तीन , चार ,पाँच छः , सात , आठ , नौ बैठते गये शून्य के बाँये 


आश्चर्य चकित हुआ वह 


अब सब भाई बहन गोल गोल घूमने लगे शून्य के 


थोड़ी देर बाद शून्य खिलखिला दिया 


धूप निकल आयी 


सौर मंडल बन गया 


सूर्य खिलखिलाया ।




*    शिक्षक दिवस के अवसर पर ।

सत्य



दीवारें और तुलसी का चौरा गवाही न दे दें 


इस भय से 


टिकठी 


सम्मान पूर्वक उठी  


दीवार और तुलसी का चौरा देखते रह गये 


तेरह दिन की ही तो बात थी ……


 फिर दीवारें रंग दी गयीं 


अलमारी पर नया पेंट चढ़ गया 


तुलसी को दिन में 


ख़्याल से पानी दिया जाने लगा 


और 


रात को दीया  जलने लगा 


दिन में सूरज  किरणे सब कुछ देख रही थीं 


सब कुछ देख रहीं थीं चन्द्र किरणें भी 


हवाओं को खबर मिल रही थी 


प्रकृति समझ रही थी ……


कभी न कभी स्वार्थ की गगरी फूट ही जायेगी ।



गुरु दक्षिणा


-इन्दु बाला सिंह 


भोले बच्चे 

गुरु में  तुम्हें अपना शिष्य बनाने का मनोबल न हो 

तो 

न बनाना उसे अपना मानसिक गुरु 

वरना 

गुरुदक्षिणा में 

अंगूठा की माँग होगी  ।



लड़की और सुरक्षा

#part_2_poem

- इन्दु बाला सिंह 



उस लड़की के 


सारे रिश्ते 


ख़ुद को उसके संकटमोचक समझते थे .……

और 

उसके 


हित मित्र भी 


सुरक्षा देना चाहते थे उसे ……


उस उच्पदस्थ लड़की को समाज में 


इज्जत प्राप्त थी


ऑफिस के कर्मचारी 


उसके आदेश का इंतज़ार करते थे 


वह स्वयं सुरक्षा देना चाहती थी 


अपने निकटस्थों को 


अपनों को .…


वह 


एक फलदार वृक्ष बनना चाहती थी 


जिसमें 


दूरस्थ असहाय पंछी घोंसला बनायें……


बाड़े में रहना 


उसे पसंद न था  ।



घर में पुरुष



#इन्दु_बाला_सिंह


शरत बो ने आत्महत्या कर ली है 


खबर उड़ी 


और 


दब गयी 


शरत के चार बेटों में से एक का ही परिवार चला 


बाक़ी तीन अकेले रहे 


छोटा मोटा काम करते रहे 


माँ के प्यार को तरसते रहे 


और 


वे भी गुजर गये 


कैसा पिता या पति था होगा वह पुरुष 


मैं आज भी सोंचती हूँ ।



एलेक्सा

- इन्दु बाला सिंह 


उसने कहा 


धीरे बोलो पड़ोसी सुन लेगा 


मैं बोल पड़ी 


ऐलेक्सा से 

तुम बतियाते दिन भर 


वो नहीं सुन लेगी 


अपना नाम सुन 


एलेक्सा बोल पड़ी - 


 ‘ कैन यू से अगेन , आई डिडंट अंडरस्टैंड ‘ ।