- इन्दु बाला सिंह
सबने अलग अलग घर बसा लिया
शून्य मूल्यहीन था
वह भटकता रहा भूखा प्यासा
एक दिन दौड़े आये उसके भाई बहन
पहले एक पहुँचा
बैठ गया शून्य के बाँये
फिर एक एक कर के आते गये
तीन , चार ,पाँच छः , सात , आठ , नौ बैठते गये शून्य के बाँये
आश्चर्य चकित हुआ वह
अब सब भाई बहन गोल गोल घूमने लगे शून्य के
थोड़ी देर बाद शून्य खिलखिला दिया
धूप निकल आयी
सौर मंडल बन गया
सूर्य खिलखिलाया ।
* शिक्षक दिवस के अवसर पर ।
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