शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

पेंशनहीन



#इन्दु_बाला_सिंह


सतत भाग्य से लड़ते रहे 


समय कटता रहा  


अस्तित्व की लड़ाई जारी रही 


गुमनाम ही रह गये 


बुद्धिहीन कहलाते रहे 


सकून की तलाश में भटकते रहे 


घर ही न था 


तो चिराग़ भी न बन सके 


चौहत्तर के हो गये 


बस पेंशनहीन जीवन जीते रहे 


भटकते रहे हम ।



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