सोमवार, 23 दिसंबर 2024

भाँति भाँति के बंदी



#इन्दु_बाला_सिंह


परेशान थी मैं 


घर में 


पर 


सारे जहाँ की ख़बरों से वाक़िफ़ थी 


आजाद जीवन से परिचित थी 


ख़बरें जेल के राजनीतिक कैदियों की यातनाएँ बता रहीं थी 


जेल उन्हें भूख और पिटाई से  तोड़ रही थी 


वे अपमान और बीमारी से  बिलबिला रहे थे ……


मैंने सोंचा 


मैं आजाद तो थी कम से कम कुछ पलों के लिये 


मुझे चाँद तारे तो दिखते थे 


उनमें बैठे मेरे पूर्वज मुझसे बातें करते थे 


मेरे सपनों में आकर वे मुझसे मिलते थे 


लोगों की निगाहों में मैं भरे पूरे परिवार की सदस्य थी 


पर 


सत्य तो मैं जानती थी 


घर में 


मैं अकेली थी 


मेरे साथ मेरे पूर्वज थे 


और 


मेरा आसमान था ।



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें