गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

नानी की जीवन संध्या



#इन्दु_बाला_सिंह


नानी मुश्किल से चल फिर पाती थी 


नौकरानी  ख़ाना पका के खिला कर चली जाती थी 


नर्स का काम था नहलाना धुलाना नानी को 


बाक़ी समय बग़ल के बिस्तर पर बैठ कर अपने कॉलेज की पढ़ाई करती थी वह


नर्स की उपस्थिति नानी का अकेलापन दूर करती थी 


किसी कारण वश नर्स कमरे से बाहर चली जाती 


तो 


नानी अपने गाँव का शादी का गीत गाने लगती थी 


गीत सुन कर मेरे मन में प्रश्न उठता  था 


आख़िर नानी क्या सोंचती होगी ?


कभी कभी तो वो सोहर भी गाती थी 


मैं सोंचती -


बेटा सागर पार है 


और 


सोहर गाते समय नानी के मन में क्या भाव आते होंगे ?


लोक गीत हमें अपने काल में खींच ले जाता है 


नानी का गाना मुझे मौन रुदन सा महसूस होता था 


जीवन संध्या भी अजीब होती है ।


10/10/24



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