14 July
2014
06:47
-इंदु बाला
सिंह
मुट्ठी का
अपना है
दूर का
एक सपना है
आँख खुली
तो
क्यूँ
डहुरा तू
सपने तो सपने
होते हैं
बूंद सरीखे
रेगिस्तान में
खो जाते हैं ......
और
रुई न धुई
भला क्यों
जुलाहन से
तू
मटकऊअल
करता रहता है
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