24 July
2014
08:58
-इंदु बाला
सिंह
हम बारम्बार
लौटते हैं
तलाशते हैं
खोये
निशानों को .....................
यह कैसी मृग
मरीचिका है
रेत के समन्दर में
भटकते रहते
हैं
अपनों की
आवाजें हवा संग आती है
सुना जाती है
हमें अपनी उपस्थिति
और
चकित हो
खुश हो
हम
कुलांचे भर
दौड़ लगा लेते
हैं |
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